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Showing posts from January, 2021

जय बिहारीजी की...by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब..वृन्दावन में एक बिहारी जी का परम् भक्त था, पेशे से वह एक दूकानदार था । वह रोज प्रातः बिहारी जी के मंदिर जाता था और फिर गो सेवा में समय देता और गरीब, बीमार और असहाय लोगों के उपचार, भोजन और दवा का प्रबन्ध करता ।वह बिहारी जी के मंदिर जाता न तो कोई दीपकजलाता न कोई माला न फूल न कोई प्रसाद। उसे अपने पिता की कही एक बात जो उसने बचपन से अपनेपिता से ग्रहण करी थी और जीवन मन्त्र बना ली । उसके पिता ने कहा था बिहारी जी की सेवा तो भाव से होती है। जो उनके हर जीव की, पशु पक्षियों की सेवा करता है वह उन्हें प्रिय है। देखो उन्होंने भी तो गौ सेवा की थी । लेकिन एक बात थी मंदिर में बिहारी जी की जगह उसे एक ज्योति दिखाई देती थी, जबकि मंदिर में बाकी के सभी भक्त कहते वाह ! आज बिहारी जी का श्रंगार कितना अच्छा है, बिहारी जी का मुकुट ऐसा, उनकी पोशाक ऐसी,तो वह भक्त सोचता… बिहारी जी सबको दर्शन देते है, पर मुझे क्यों केवल एक ज्योति दिखायी देती है ।हर दिन ऐसा होता । एक दिन बिहारी जी से बोला ऐसी क्या बात है की आप सबको तो दर्शन देते है परमुझे दिखायी नहीं देते । कल आपको मुझे दर्शन देना ही पड़ेगा । अगले दिन मंदिर गया फिर बिहारी जी उसे ज्योत के रूप में दिखे ।वह बोला बिहारी जी अगर कल मुझे आपने दर्शन नहीं दिये तो में यमुना जी में डूबकर मर जाँऊगा । उसी रात में बिहारी जी एक कोड़ी के सपने में आये जो कि मंदिर के रास्ते में बैठा रहता था, और बोले तुम्हे अपना कोड़ ठीक करना है वह कोड़ी बोला-हाँ भगवान, बिहारिजी बोले – तो कल यहाँ से मेरा एक भक्त निकलेगा तुम उसके चरण पकड़ लेना और तब तक मत छोड़ना जब तक वह ये न कह दे कि बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करे । कोड़ी बोला पर प्रभु वहां तो रोज बहुत से भक्त आते हैं मैं उन्हें पहचानुगां कैसे ?भगवान ने कहा जिसके पैरों से तुम्हे प्रकाश निकलता दिखायी दे वही मेरा वह भक्त है अगले दिन वह कोड़ी रास्ते में बैठ गया जैसे ही वह भक्त निकला उसने चरण पकड़ लिए और बोला पहले आप कहो कि मेरा कोड़ ठीक हो जाये । वह भक्त बोला मेरे कहने से क्या होगा आप मेरे पैर छोड दीजिये, कोड़ी बोला जब तक आप ये नहीं कह देते की बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करे तब तकमैं आपके चरण नहीं छोडूगा । भक्त वैसे ही चिंता में था, कि बिहारी जी दर्शन नहीं दे रहे, ऊपर से ये कोड़ी पीछे पड़ गया तो वह झुँझलाकर बोला जाओ बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करे और मंदिर चला गया, मंदिर जाकर क्या देखता है बिहारीजी के दर्शन हो रहे हैं,बिहारीजी से पूछने लगा अब तक आप मुझेदर्शन क्यों नहीं दे रहे थे, तो बिहारीजी बोले: तुममेरे निष्काम भक्त हो आज तक तुमने मुझसे कभीकुछ नहीं माँगा इसलिए में क्या मुँह लेकर तुम्हे दर्शन देता, यहाँ सभी भक्त कुछ न कुछ माँगते रहते हैइसलिए में उनसे नज़रे मिला सकता हूँ, पर आजतुमने रास्ते में उस कोड़ी से कहा-कि बिहारी जीतुम्हारा कोड़ ठीक कर दे इसलिए में तुम्हे दर्शनदेने आ गया ।भक्तों भगवान की निष्काम भक्ति ही करनी चाहिये, भगवान की भक्ति करके यदि संसार के ही भोग,सुख ही माँगे तो फिर वह भक्ति नहीं वह तो सोदेबाजी है…!!! और यह कथा जो कहना चाहती हैं सबसे बड़ी परमात्म सेवा उनकी है जो वास्तव में बेबस और लाचार है । असहाय और दुखीयों की निस्वार्थ सेवा इस जगत की सबसे बड़ी सेवा हैराधे राधे

जय बिहारीजी की..... वृन्दावन में एक बिहारी जी का परम् भक्त था, पेशे से वह एक दूकानदार था ।  वह रोज प्रातः बिहारी जी के मंदिर जाता था और फिर गो सेवा में समय देता और गरीब, बीमार और असहाय लोगों के उपचार, भोजन और दवा का प्रबन्ध करता । वह बिहारी जी के मंदिर जाता न तो कोई दीपक जलाता न कोई माला न फूल न कोई प्रसाद। उसे अपने पिता की कही एक बात जो उसने बचपन से अपनेपिता से ग्रहण करी थी और जीवन मन्त्र बना ली ।  उसके पिता ने कहा था बिहारी जी की सेवा तो भाव से होती है। जो उनके हर जीव की, पशु पक्षियों की सेवा करता है वह उन्हें प्रिय है। देखो उन्होंने भी तो गौ सेवा की थी ।  लेकिन एक बात थी मंदिर में बिहारी जी की जगह उसे एक ज्योति दिखाई देती थी, जबकि मंदिर में बाकी के सभी भक्त कहते वाह ! आज बिहारी जी का श्रंगार कितना अच्छा है, बिहारी जी का मुकुट ऐसा, उनकी पोशाक ऐसी, तो वह भक्त सोचता…  बिहारी जी सबको दर्शन देते है, पर मुझे क्यों केवल एक ज्योति दिखायी देती है । हर दिन ऐसा होता ।  एक दिन बिहारी जी से बोला ऐसी क्या बात है की आप सबको तो दर्शन देते है पर मुझे दिखायी नहीं देते । कल आपक...