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योग में सक्रिय पिछले दस वर्षों सेयोग और प्राणायाम कितने कारगर हैं? पहले ये दोनों मुद्राएं करके बताएं😌🙏,



By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//
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पहले ये दोनों मुद्राएं करके बताएं😌🙏


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आप नीचे टिप्पणियों में अपने चित्र सांझे कर सकते हैं 😌

योग,[1]

बेहद फैला हुआ विषय है। इसे केवल किसी एक विषय के तौर पर आंकना या समझना मुश्किल है। योग एक जीवनशैली है। जिसमें शारीरिक क्रियाएं, विचार, आचरण, खानपान, आध्यात्म, ज्ञान, संबंध सभी को शामिल किया गया है।

आसान शब्दों में योग एक जीवनशैली है।

जिसके अन्तर्गत व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यत्मिक क्रियाओं और प्रथाओं द्वारा एक बेहतर जीवन की रूपरेखा बताई गई है।

कई जगह योग का प्रारंभ सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान कहा गया है। किन्तु इसके उदयन का काल निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। अधिकतर वैदिक काल के दौरान ही इसके होने के सबूत हैं, १३०० से ३०० ईसा पूर्व।

योग का मुख्य उद्देश्य है मोक्ष।

मोक्ष उस हर विचार, आचरण, आहार, कर्म, क्रिया और जीवनशैली से जो दुख से जुड़ी है।
तीन प्रकार के योग।

कर्म योग,
कर्म और किया से जुड़ा योग।
भक्ति योग,
इसका मुख्य उद्देश्य है ईश्वर की प्राप्ति अथवा भक्ति की प्राप्ति।
ज्ञान योग,
ज्ञान को पाने का उद्देश्य।

योग मूल रूप से एक आध्यात्मिक अनुशासन है जो एक अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित है जो मन और शरीर के बीच सद्भाव लाने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह एक जैविक, सम्पूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने की कला है। शब्द योग संस्कृत के शब्द 'युज’ से बना है। जिसका मतलब है जोड़ना।
योग और आयुर्वेद दोनों ऐतिहासिक रूप से संबंधित हैं और प्राचीन काल से एक दूसरे के साथ मिलकर विकसित हुए हैं। योगिक पवित्र लेखन के अनुसार योग का कार्य सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना के मिलन का संकेत देता है, जो मन और शरीर, मनुष्य और प्रकृति के बीच एक आदर्श अनुरूपता दर्शाता है।
माना जाता है कि योग तीन दोषों को संतुलित करता है , कफ, पित्त, वात।

वर्तमान में समकालीन परिस्थितियों में, सभी को स्वास्थ्य के संरक्षण, रखरखाव और संवर्धन के प्रति योग प्रथाओं के बारे में दृढ़ विश्वास है। स्वामी शिवानंद, श्री टी.कृष्णाचार्य, स्वामी कुवलयानंद, श्री योगेन्द्र, स्वामी राम, श्री अरबिंदो, महर्षि महेश योगी, आचार्य राजनिष, पट्टाभिजोइस, बीकेएस अयंगर, स्वामी सत्यानंद सरस्वती जैसी अविश्वसनीय हस्तियों के शोध और प्रचार से योग दुनिया भर में फैल गया है।
वैसे तो योग सीखने में कई चक्र और आसनों को सीखना पड़ता है। [2]

किन्तु हठ योग के निम्न बारह आसन अहम हैं।

[3]

  • शीर्षासन।
  • सर्वांगासन।
  • हल आसन।
  • मत्स्यासन।
  • पश्चिमोतनासन।
  • भुजंगासन।
  • शलभासन।
  • धनुषासन।
  • अर्ध मत्स्येंद्र आसन।
  • मयूरासन।
  • पदा हस्तासना।
  • त्रिकोणासन।

लाभ,

  1. लचीलापन बढ़ना।
  2. मांसपेशियों की शक्ति बढ़ाने और चोट से उबरने में सहायक।
  3. श्वसन, ऊर्जा और जीवन शक्ति में सुधार।
  4. संतुलित आहार पचन बनाए रखना।
  5. वज़न घटाना।
  6. कार्डियो और संचार स्वास्थ्य बेहतर होना।
  7. एथलेटिक प्रदर्शन में सुधार।
  8. चोट से सुरक्षा।
  9. इसके अलावा मानसिक तनाव से जूझने में बेहद कारगर।

प्राणायम!

योगासन से जुड़ी श्वास प्रक्रिया को प्राणायाम कहा जाता है। प्राण+ आयाम( श्वास+निलंबन)

तीन चरणों में इसे पूरा किया जाता है: पूरक(श्वास अंदर लेना), कुंभक (पकड़े रखना), रिचक ( श्वास छोड़ना)

योग करते वक्त श्वास को किस प्रकार लेना है तथा उसे कितने समय तक पकड़ कर रखना है और किस वक्त छोड़ना है, ये पूरी प्रक्रिया प्राणायम है।

इसे योग करते वक्त, योगासन के साथ साथ अथवा योग के अलावा स्थिर आसन में केवल श्वास नियंत्रण के तौर पर की जा सकती है।

आसान शब्दों में प्राणायम, श्वास के लेने और छोड़ने के बीच के अंतराल को खींचने की प्रक्रिया है।

प्राणायम १२ प्रकार के होते हैं।[4]

नाड़ी शोधन

अपने अंगूठे के साथ, अपने दाहिने नथुने पर नीचे दबाए, अपने बाएं नथुने का उपयोग गहरी साँस लेने के लिए करें।

एक बीट के लिए अपनी सांस पकड़े और फिर अपने अंगूठे को स्विच करें ताकि आप अब अपने बाएं नथुने पर दबा रहे हों, और फिर अपने दाहिने नथुने से साँस छोड़ें ।

इस प्रक्रिया को दोहराएं, एक के माध्यम से श्वास और दूसरे के माध्यम से साँस छोड़ते हुए अपने नथुने के बीच बारी-बारी से। आप इसे 10-15 बार दोहरा सकते हैं।

शिताली प्राणायम
यह विशेष प्राणायाम शरीर को ठंडा करने के लिए प्रभावी है। आप बैठने की स्थिति में शुरू करते हैं और पांच से छह गहरी साँस लेकर प्राणायाम के लिए अपने शरीर को तैयार करते हैं।

फिर अपने मुंह से एक 'ओ' आकार बनाएं और गहराई से साँस लेना शुरू करें। हमेशा अपनी नाक के माध्यम से साँस छोड़ते जाए। इसे 5-10 बार दोहराया जा सकता है।
उज्जई प्राणायम
यह प्राणायाम समुद्र की लहरों की आवाज़ की नकल करने के बारे में है। यह प्रदर्शन करने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन यह विश्राम में काफी मदद करेगा।

आप एक जगह बैठे, क्रॉस-लेग स्थिति में और अपने मुंह से सांस लेना शुरू करें। जब आप साँस लेते हैं और साँस छोड़ते हैं, तो कोशिश करें कि, अपने गले को एक तरह से संकुचित करें कि आपको घुंटन का अनुभव हो। परिणाम एक ध्वनि होगी जो समुद्र की लहरों के समान है।

प्राणायाम के दूसरे चरण में, आप अपना मुंह बंद करते हैं और अपनी नाक से सांस लेते रहें। हालांकि, आपको अपने गले पर एक ही कसाव का उपयोग करना जारी रखना चाहिए। आप इसे 10-15 बार में दोहरा सकते हैं।
कपालभाति प्राणायम
यह प्राणायाम एक जगह बैठी स्थिति में शुरू होता है, जब आप सामान्य रूप से 2-3 बार सांस लेते हैं। इसके बाद, आपको गहराई से साँस लेना चाहिए और बल के साथ साँस छोड़ना चाहिए, अपने पेट को अंदर की तरफ खाली करते हुए आप सारी हवा को निष्कासित करते हैं। जब आप फिर से सांस लेते हैं, तो आपका पेट वापस उसी स्थिति में चला जाना चाहिए।

आपको इसे 20-30 बार दोहराना चाहिए।
दीर्घा प्राणायम
यह एक प्राणायाम है जिसे बैठने के स्थान पर लेट कर किया जाता है। आप अपने पेट को भरते हुए, बहुत सारी हवा लेते हैं, ताकि वह ऊपर उठे। आप कुछ सेकंड के लिए इस स्थिति में रहें और फिर सांस छोड़ें, अपने पेट को अंदर की तरफ खींचे जब तक की सांस पूरी तरह से बाहर नहीं निकल जाती।

प्राणायाम के दूसरे भाग में, आप और भी अधिक गहराई से साँस लेते हैं, इसलिए आप अपने पसली के पिंजरे को हवा से भी भर दें। फिर साँस छोड़ना। तीसरी बार जब आप साँस लेते हैं, तो आपको और भी गहरी साँस लेनी है । अपने पेट, रिब पिंजरे, और दिल के केंद्र को सांस से भरने की कल्पना करें। धीरे-धीरे सांस छोड़ें।

आप इस प्रक्रिया को 5-6 बार दोहरा सकते हैं।

विलोम प्राणायम
इस प्राणायाम को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है;

  • रोक कर साँस लेना,आप एक आरामदायक स्थिति में लेट कर शुरू करें और सामान्य रूप से सांस लेते रहें। आराम से सांस लेते हुए आप 2-3 सेकंड के लिए सांस लेकर रुक जाए। दो सेकंड के लिए अपनी सांस पकड़े और फिर से साँस लेना शुरू करें।
  • 2 सेकंड के लिए सांस रोकें और फिर धीरे-धीरे फिर से शुरू करें। जब तक आपके फेफड़े हवा से भरे न गया हों तब तक अंतराल में साँस लेना जारी रखें। धीरे-धीरे सांस छोड़ें जब तक कि आपने सारी हवा को बाहर नहीं निकाल दिया।

अनुलोम प्राणायम
यह विलोम प्राणायाम के समान है क्योंकि यह वैकल्पिक नथुने की श्वास को भी प्रोत्साहित करता है। साँस लेना और साँस छोड़ना एक नथुने के साथ किया जाता है लेकिन दूसरा नथुना आंशिक रूप से खुला होता है क्योंकि पूरी तरह से अवरुद्ध होता है।

भ्रमड़ी प्राणायम
प्राणायाम में आपकी आंखें और कान बंद हो जाएंगे। आप अपने कानों को अपने अंगूठे से बंद करें और अपनी उंगलियों की मदद से अपनी आँखें बंद करें। ओम का जाप करते हुए गहरी सांस लें और छोड़ें। 10-15 बार दोहराएं।

भस्त्रिका प्राणायम
यह सर्दियों के महीनों के लिए फायदेमंद है जब आपको शरीर में गर्मी बनाए रखने की आवश्यकता होती है। आप एक जगह बैठे, क्रॉस-लेग्ड स्थिति में शुरू करते हैं और लगातार बहुत तेज गति से साँस लेना और छोड़ना शुरू करते हैं। आपकी सांस को लगातार चलते रहना मुश्किल हो सकता है लेकिन लगातार रहने की पूरी कोशिश करें।

कुछ राउंड्स के बाद, अपनी सांस को अंत में पकड़ें और धीरे-धीरे सांस छोड़ें।

शीतली प्राणायम
आप अपने मुंह से साँस लेना शुरू करें। हालांकि, आपको अपनी जीभ को गोल घुमाकर के रखना होगा। अपनी ठुड्डी को आगे की ओर झुकाएं और थोड़ी देर के लिए अपनी सांस रोकें। फिर अपने नथुने से साँस छोड़ें। यह गर्म महीनों के लिए एक महान प्राणायाम है क्योंकि यह आपके शरीर को ठंडा रखता है।
मूर्छा प्राणायम
यह एक कठिन प्राणायाम है जिसमें बिना साँस के लिए, लगातार साँस छोड़ना शामिल है। यह आपके शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड की एकाग्रता को बढ़ाता है और एक बिंदु के बाद आपको बेहोश कर देता है। आप धीरे-धीरे चेतना वापस पा लेते हैं जब आपका शरीर स्वचालित रूप से आपकी नींद में प्रवेश करना शुरू कर देता है।

पलवनी प्राणायम
यह पानी में किया जाता है और केवल अधिक अनुभवी योगियों के लिए सलाह दी जाती है। इसमें आपकी सांस के साथ काम करना शामिल है जो आपको पानी में तैरते हुए करनी होती है।

स्वयं का अनुभव,

मै शारीरिक रूप से हमेशा सक्रिय रही हूं। कोई न कोई एक्टिविटी मैंने शुरू से अपनाई हुई है शारीरिक सक्रियता के लिए। दौड़ना, नाचना, चलना, खेल, इत्यादि। बीच में थोड़ा पार्कर भी किया था।

अब चार सालों से योग के प्रति जागरूकता और चाहत हुई है। कुछ चोटों की वजह से धीमा योग अब ज्यादा कारगर मालूम हो रहा है।

बाकी प्राणायम द्वारा मैंने अपनी साइनस को काफी हद तक नियंत्रण में रखा है।

प्राणायम तो मेरे ख्याल से योग से भी कई गुना ज्यादा फायदेमंद है। इससे कई रोगों का इलाज मुमकिन है।

मुझे तो एसिडिटी में भी प्राणायम मात्र करने से फायदा पहुंचा है।

योग से ही मेरे शरीर में लचीलापन बढ़ा है। जो चोट होने से मुझे बचाएगा।

बाकी कई लोगों को लगता है कि इससे वजन काम होगा कि नहीं। तो मेरे ख्याल से आपको इसके साथ खान पान भी बदलना होगा साथ ही चलने जैसी कोई क्रिया अपनानी होगी। केवल योग और प्राणायाम से शरीर बलिष्ठ जरूर होगा पर वसा कम शायद इतनी ना हो।

मेरा सुझाव है कि शुरुवात आप प्राणायाम से करें फिर धीरे धीरे योग की तरफ बढ़े। फिर योग में प्राणायम को समिल्लित करें, बेहद फायदा होगा।

चित्र स्त्रोत स्वयं के तथा उल्लेखनीय साइट से।

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खंड में प्रायः यथावत आया है । इस पर प्रायः लोग शंका करते हैं अथवा अधिकतर लोगों को पता नहीं होता है कि वह शिवशतनाम कौन सा है, जिसका नारद जी ने जप किया ,जिससे उन्हें परम कल्याणमयी शांति की प्राप्ति हुई ?यहां सभी लोगों के लाभ हेतु वह शिवशतनाम मूल रूप में दिया जा रहा है । इस शिवशतनाम का उपदेश साक्षात् नारायण ने पार्वतीजी को भी दिया था , जिससे उन्हें भगवान शंकर पतिरूपमें प्राप्त हुए थे और वह उनकी साक्षात् अर्धांगनी बन गयीं।।। शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।।जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर ।जयेश्वर जयेशान जय सर्वज्ञ कामद ॥ १॥नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे ।अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ ॥ २॥जय पापहरानङ्गनिःसङ्गाभङ्गनाशन ।जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन ॥ ३॥जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित ।त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक ॥ ४॥शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय ।शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय ॥ ५॥सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर ।जयोग्ररूप मीमेश भव भर्ग जय प्रभो ॥ ६॥जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक ।रुण्डमालिन् कपालिंस्थं भुजङ्गाजिनभूषण ॥ ७॥दिगम्बर दिशां नाथ व्योमकश चिताम्पते ।जयाधार निराधार भस्माधार धराधर ॥ ८॥देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत ।वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव ॥ ९॥भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण ।त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते ॥ १०॥शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज ।नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन ॥ ११॥कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत् ।जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो ॥ १२॥पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत् ।दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल ॥ १३॥अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते ।सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर ॥ १४॥एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवकृतं तु ये ।शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह शृण्वन्ति च पठन्ति च ॥ १५॥न तापास्त्रिविधास्तेषां न शोको न रुजादयः ।ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते ॥ १६॥श्रीः प्रज्ञाऽऽरोग्यमायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नतिम् ।विद्या धर्मे मतिः शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशयः ॥ १७॥इति श्रीस्कन्दपुराणे सह्याद्रिखण्डेशिवाष्टोत्तरनामशतकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥🌹 भोले बाबा के 108 नाम 🌹भगवान शिव शतनाम-नामावली स्तोत्रम्!ॐ शिवाय नमः ॥ॐ महेश्वराय नमः ॥ॐ शंभवे नमः ॥ॐ पिनाकिने नमः ॥ॐ शशिशेखराय नमः ॥ॐ वामदेवाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ॐ कपर्दिने नमः ॥ॐ नीललोहिताय नमः ॥ॐ शंकराय नमः ॥ १० ॥ॐ शूलपाणये नमः ॥ॐ खट्वांगिने नमः ॥ॐ विष्णुवल्लभाय नमः ॥ॐ शिपिविष्टाय नमः ॥ॐ अंबिकानाथाय नमः ॥ॐ श्रीकंठाय नमः ॥ॐ भक्तवत्सलाय नमः ॥ॐ भवाय नमः ॥ॐ शर्वाय नमः ॥ॐ त्रिलोकेशाय नमः ॥ २० ॥ॐ शितिकंठाय नमः ॥ॐ शिवाप्रियाय नमः ॥ॐ उग्राय नमः ॥ॐ कपालिने नमः ॥ॐ कौमारये नमः ॥ॐ अंधकासुर सूदनाय नमः ॥ॐ गंगाधराय नमः ॥ॐ ललाटाक्षाय नमः ॥ॐ कालकालाय नमः ॥ॐ कृपानिधये नमः ॥ ३० ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐ परशुहस्ताय नमः ॥ॐ मृगपाणये नमः ॥ॐ जटाधराय नमः ॥ॐ क्तेलासवासिने नमः ॥ॐ कवचिने नमः ॥ॐ कठोराय नमः ॥ॐ त्रिपुरांतकाय नमः ॥ॐ वृषांकाय नमः ॥ॐ वृषभारूढाय नमः ॥ ४० ॥ॐ भस्मोद्धूलित विग्रहाय नमः ॥ॐ सामप्रियाय नमः ॥ॐ स्वरमयाय नमः ॥ॐ त्रयीमूर्तये नमः ॥ॐ अनीश्वराय नमः ॥ॐ सर्वज्ञाय नमः ॥ॐ परमात्मने नमः ॥ॐ सोमसूर्याग्नि लोचनाय नमः ॥ॐ हविषे नमः ॥ॐ यज्ञमयाय नमः ॥ ५० ॥ॐ सोमाय नमः ॥ॐ पंचवक्त्राय नमः ॥ॐ सदाशिवाय नमः ॥ॐ विश्वेश्वराय नमः ॥ॐ वीरभद्राय नमः ॥ॐ गणनाथाय नमः ॥ॐ प्रजापतये नमः ॥ॐ हिरण्यरेतसे नमः ॥ॐ दुर्धर्षाय नमः ॥ॐ गिरीशाय नमः ॥ ६० ॥ॐ गिरिशाय नमः ॥ॐ अनघाय नमः ॥ॐ भुजंग भूषणाय नमः ॥ॐ भर्गाय नमः ॥ॐ गिरिधन्वने नमः ॥ॐ गिरिप्रियाय नमः ॥ॐ कृत्तिवाससे नमः ॥ॐ पुरारातये नमः ॥ॐ भगवते नमः ॥ॐ प्रमधाधिपाय नमः ॥ ७० ॥ॐ मृत्युंजयाय नमः ॥ॐ सूक्ष्मतनवे नमः ॥ॐ जगद्व्यापिने नमः ॥ॐ जगद्गुरवे नमः ॥ॐ व्योमकेशाय नमः ॥ॐ महासेन जनकाय नमः ॥ॐ चारुविक्रमाय नमः ॥ॐ रुद्राय नमः ॥ॐ भूतपतये नमः ॥ॐ स्थाणवे नमः ॥ ८० ॥ॐ अहिर्भुथ्न्याय नमः ॥ॐ दिगंबराय नमः ॥ॐ अष्टमूर्तये नमः ॥ॐ अनेकात्मने नमः ॥ॐ स्वात्त्विकाय नमः ॥ॐ शुद्धविग्रहाय नमः ॥ॐ शाश्वताय नमः ॥ॐ खंडपरशवे नमः ॥ॐ अजाय नमः ॥ॐ पाशविमोचकाय नमः ॥ ९० ॥ॐ मृडाय नमः ॥ॐ पशुपतये नमः ॥ॐ देवाय नमः ॥ॐ महादेवाय नमः ॥ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ हरये नमः ॥ॐ पूषदंतभिदे नमः ॥ॐ अव्यग्राय नमः ॥ॐ दक्षाध्वरहराय नमः ॥ॐ हराय नमः ॥ १०० ॥ॐ भगनेत्रभिदे नमः ॥ॐ अव्यक्ताय नमः ॥ॐ सहस्राक्षाय नमः ॥ॐ सहस्रपादे नमः ॥ॐ अपपर्गप्रदाय नमः ॥ॐ अनंताय नमः ॥ॐ तारकाय नमः ॥ॐ परमेश्वराय नमः ॥ १०८ ॥🙏🏼 हर हर महादेव जी 🙏🏼

🌺 जिस समय नारद जी का मोह भंग हो गया था और नारद जी ने विष्णु जी को श्राप देने के बाद अपने पाप का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा तो विष्णु जी ने नारद जी को काशी में जाकर कौन से शिव स्तोत्र का जप करने को कहा था ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब (1)शिव तांडव स्तोत्र (2)शिव शतनाम स्तोत्र (3)शिव सहस्त्रनाम स्तोत्र (4)शिव पंचाक्षर स्तोत्र (5)नील रुद्र शुक्त 🌹 इसका सही उत्तर है शिव शतनाम स्तोत्र 🌹 यह सब देखकर नारद जी की बुद्धि भी शांत और शुद्ध हो गई । उन्हें सारी बीती बातें ध्यान में आ गयीं । तब मुनि अत्यंत भयभीत होकर भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे कि- भगवन ! मेरा शाप मिथ्या हो जाये और मेरे पापों कि अब सीमा नहीं रही , क्योंकि मैंने आपको अनेक दुर्वचन कहे । इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि - जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत विश्रामाँ ।। कोउ नहीं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें ।। जेहि पर कृपा न करहि पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी ।। विष्णु जी ने कहा नारद जी आप जाकर शिवजी के शिवशतनाम का जप कीजिये , इससे आपके हृदय में तुरंत शांति होगी । इ...

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