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मंत्र सिद्ध होने पर क्या होता है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦सिद्ध होगा, और उससे लाभ मिलेंगे तभी आप जाप करेंगे तो यकीन जानिए आपको कभी कोई लाभ नहीं होगा.पहले तो ये जानिए की मन्त्र जाप के विधान क्या है?१. क्या आप गुरु प्रदत्त मंत्र का जाप क्र रहे हैं, या अपनी इच्छा से ही किसी मन्त्र का जाप क्र रहे हैं?२. क्या आप स्थान, जाप की संख्या, अवधि, दिशा, ब्रह्मचर्य, भूमि शयन और अन्य नियमों का पालन सतत क्र रहे हैं?३. पुरस्चरण के पश्चात हवन, तर्पण, मार्जन क्र रहे हैं?४. मन्त्र के देवता, ऋषि, छंद का स्मरण , मन्त्र के देवता का ध्यान, उनकी पूजा अर्चना क्र रहे हैं?इसके अलावा कई और भी विषय है, जिनको समझना जरूरी है,फ़िलहाल आपके प्रश्न का उत्तरमन्त्र सिद्ध होता है जापक के कुंडलनी स्तर बढने पर, मन्त्र के देवता के साथ स्थापत्य स्थिर होने पर और ध्यान में एकाकार होकर इष्ट से जुडाव होने पर, ये तीनो एक ही कार्य यानी की मन्त्र जाप में साधक की क्षमता पर बहुत निर्भर करते हैं.मंत्र, गुरु और उसके प्रभाव गुरुगीता के कथनानुसार गोपनीय ही रखे जाते हैं, तो व्यक्तिगत अनुभव कोई साधक यहाँ लिखेगा नही, फिर भी जो प्रमाणिक कथन मिलें हैं वह आपको बतलाता हूँ.१. आपकी कार्य करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी.२. आपके सहचर्य से लोगो को आनंद और सकरात्मकता की अनुभूति होगी३. दुष्कर से दिखने वाले कार्य सहज में होने लगेंगे४. एक्सीडेंट, लोकभय, या अन्य आपदाओं का आप पर कम असर पड़ेगा५. मन्त्र में ध्यान के पश्चात आपको शान्ति का अनुभव होगा६. सुख दुःख सर्दी गर्मी सहने का अभ्यास बढ़ जायेगा७. आप दुसरो की मुश्किलें आसानी से हल कर पाएंगे८. पूर्वाभास् होने लगेगा९. आप रोग मुक्त होने लगेंगे१०. अनायास ही नये अवसर और नये विचार आपके जीवन को उच्च गति देंगे११. आपकी वाणी में अलग मिठास, मधुरता, और प्रभाव होगा१२. शरीर में अलग कांति, लालिमा और चेहरे पर अलग आभा नजर आएगी१३. लोगो की पहचान करना, उनहे आपसे क्या चाहिए ये आप जल्दी जान पाएंगे१४. पूर्व पाप कर्म दग्ध होने लगेंगे१५. यदि आप मासं मदिरा का सेवन (या अन्य व्यसन) में होंगे तो स्वयम से ही छोड़ देंगे१६. दिव्य अनुभूतियाँ होती रहेंगी१७. आपकी क्षमता के अनुसार दिव्य दर्शन, ध्यान में अंतर यात्रा, गोपनीय विषयों में उत्तर स्वयं से मस्तिष्क में प्रकट होने लगेंगे, अंतर आत्मा से उत्तर प्राप्त होने लगेंगे, आकाशवाणी क आभास होगा, स्वप्न में देवता का साकार या ब्रह्म का निराकार स्वरुप, ध्यान में किसी के साथ बेठे होने का संकेत१७. ध्यान में शीतलता का आभास१८. कुण्डलिनी शक्ति का आभास अलग अलग चक्रों में१९. बड़ी आपदाओं में भी आप घबराएंगे नहीं, सहज रूप से आप निपट पाएंगे२०. पाप कर्मो से रूचि घटेगी२१. संग्रह की इच्छा कम होगी२२. जीभ पर स्वतः नियंत्रण होगा२३. मन और शरीर के विकारों का नाश होना शुरू होगासुनने में शायद आपमें से कई लोगो को ये अटपटे लगे, पर कई साधकों के अनुभव रूपी ये २३ पॉइंट्स मेने लिखे हैं, इनके अलावा भी अनगिनत लाभ होते हैं,पर सावधान, लाभ के लिए करोगे जाप, तो कुछ समय के बाद मन्त्र की शक्ति क्षीण होगी और आप फिर ज्यों के त्यों,मेहनत करते रहे और सतत ध्यान, जप करते रहे.जय श्री रामVnita Kasnia Punjab3.1 हज़ार बार देखा गया43 अपवोट देखेंअपना अनुभव शेयर कर rhi हूं…. लोकडाउन की ही बात है तीन महीने पहले मैं एक महान आत्मा से सोशल मीडिया पर मिLi जो शिवजी के उपासक है मेंने उन्हें अपना हाथ दिखाया और अपने विवाह और सरकारी नौकरी से संबंधित सवाल किए… नौकरी से संबंधित सवाल पे उन्होंने एक गुरु मंत्र दिया और छह दिनों में 60000 बार उस मंत्र का जाप करने को कहा….मेंने अनुसरण किया और मंत्र जाप पूर्ण होने पर उन्हें बताया उसके दो रोज बाद जब मे छत पर बैठा कुछ लिखने का प्रयास कर रहा था तो अचानक से मेरा हाथ बहुत तेजी से कांपने लगा, मुझे लगा कहीं ये लकवा तो नहीं डर से उस समय लकवे से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को मेंने उन्हीं कुछ मिनटों मे जी लिया के कैसे ये पूरे शरीर मे फैलेगा…जब मेंने गुरूजी से इसके बारे मे बात की तो उन्होंने कहा ये मंत्र शक्ति है जो मुझ से सम्भल नहीं रही एक से दो दिन मे सब ठीक हो जाएगा वैसा ही हुआ…. हालाँकि मेंने रूद्राक्ष माला गलत तरीके से पकडी उसे अंगूठे और उसके पास वाली अंगुली से जपा, गुरु मुख के उपर से भी जाप किया जो गलत था पर मंत्र के प्रति मेरी आस्था और दोहराव सही था…..मुझे नहीं पता ये सिद्ध होगा या नहीं या हुआ या नहीं… पर इससे मुझमे सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ जो मेरे लिए काफी थीमुझे कयी बातें सीखने को मिलीअब मेंने माला सही तरीके से जपता हूमुझे पता चला गुरु मंत्र किसी और को नहीं बताते…मेरा हमेशा से मानना है कि ये संसार एक एनर्जी चला रही है…अगर हम अच्छे कर्म करते है तो हमारे चारो तरफ एक सात्विक एनर्जी का आयाम रहता है…. और बुरे कर्मों से तामसिक एनर्जी का आयाम बन जाता है जो हमें और बुराई की तरफ ले जाता है….जब भी मैं कहीं शिवाय, महादेव, रुद्राय सुनता हू एक एनर्जी मेरे शरीर मे प्रवाहित होती है हर बार मेरे हाथो के बाल खड़े हो जाते हैं और एक जोश आता है…बोलो हर हर महादेव500 से अधिक अपवोटो के लिए आप सब का तहे-दिल से शुक्रिया, हालाँकि मेंने 10 से ज्यादा अपवोटो की भी उम्मीद नहीं की थी ये मेरी शायद दूसरी पोस्ट है इससे पहली वाली पोस्ट पे शायद 5 या 6 अपवोट आए थेपहली बार इतने अपवोट देख कर कितनी खुशी होती है कोई मुझ से पूछे….जब लोगों की इतने अपवोटो पर धन्यवाद करते देखता था तो मुझे लगा मुझे भी करना चाहिए और संपादित करते समय पोस्ट मे कुछ गलती ना हो इसलिए पहले पुरानी किसी पोस्ट को संपादित कर के देखा….यहा मैं थोड़ा और बताना chahungi जो पोस्ट लिखते समय मुझसे छुट gyi….कंपन सिर्फ मेरे उसी हाथ की उँगलियों मे हुआ था जिससे मेंने माला जपी थी और जिन उँगलियों का इसमे सहयोग था….

पहले तो ये जानिए की मन्त्र जाप के विधान क्या है?

१. क्या आप गुरु प्रदत्त मंत्र का जाप क्र रहे हैं, या अपनी इच्छा से ही किसी मन्त्र का जाप क्र रहे हैं?

२. क्या आप स्थान, जाप की संख्या, अवधि, दिशा, ब्रह्मचर्य, भूमि शयन और अन्य नियमों का पालन सतत क्र रहे हैं?

३. पुरस्चरण के पश्चात हवन, तर्पण, मार्जन क्र रहे हैं?

४. मन्त्र के देवता, ऋषि, छंद का स्मरण , मन्त्र के देवता का ध्यान, उनकी पूजा अर्चना क्र रहे हैं?

इसके अलावा कई और भी विषय है, जिनको समझना जरूरी है,

फ़िलहाल आपके प्रश्न का उत्तर

मन्त्र सिद्ध होता है जापक के कुंडलनी स्तर बढने पर, मन्त्र के देवता के साथ स्थापत्य स्थिर होने पर और ध्यान में एकाकार होकर इष्ट से जुडाव होने पर, ये तीनो एक ही कार्य यानी की मन्त्र जाप में साधक की क्षमता पर बहुत निर्भर करते हैं.

मंत्र, गुरु और उसके प्रभाव गुरुगीता के कथनानुसार गोपनीय ही रखे जाते हैं, तो व्यक्तिगत अनुभव कोई साधक यहाँ लिखेगा नही, फिर भी जो प्रमाणिक कथन मिलें हैं वह आपको बतलाता हूँ.

१. आपकी कार्य करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी.

२. आपके सहचर्य से लोगो को आनंद और सकरात्मकता की अनुभूति होगी

३. दुष्कर से दिखने वाले कार्य सहज में होने लगेंगे

४. एक्सीडेंट, लोकभय, या अन्य आपदाओं का आप पर कम असर पड़ेगा

५. मन्त्र में ध्यान के पश्चात आपको शान्ति का अनुभव होगा

६. सुख दुःख सर्दी गर्मी सहने का अभ्यास बढ़ जायेगा

७. आप दुसरो की मुश्किलें आसानी से हल कर पाएंगे

८. पूर्वाभास् होने लगेगा

९. आप रोग मुक्त होने लगेंगे

१०. अनायास ही नये अवसर और नये विचार आपके जीवन को उच्च गति देंगे

११. आपकी वाणी में अलग मिठास, मधुरता, और प्रभाव होगा

१२. शरीर में अलग कांति, लालिमा और चेहरे पर अलग आभा नजर आएगी

१३. लोगो की पहचान करना, उनहे आपसे क्या चाहिए ये आप जल्दी जान पाएंगे

१४. पूर्व पाप कर्म दग्ध होने लगेंगे

१५. यदि आप मासं मदिरा का सेवन (या अन्य व्यसन) में होंगे तो स्वयम से ही छोड़ देंगे

१६. दिव्य अनुभूतियाँ होती रहेंगी

१७. आपकी क्षमता के अनुसार दिव्य दर्शन, ध्यान में अंतर यात्रा, गोपनीय विषयों में उत्तर स्वयं से मस्तिष्क में प्रकट होने लगेंगे, अंतर आत्मा से उत्तर प्राप्त होने लगेंगे, आकाशवाणी क आभास होगा, स्वप्न में देवता का साकार या ब्रह्म का निराकार स्वरुप, ध्यान में किसी के साथ बेठे होने का संकेत

१७. ध्यान में शीतलता का आभास

१८. कुण्डलिनी शक्ति का आभास अलग अलग चक्रों में

१९. बड़ी आपदाओं में भी आप घबराएंगे नहीं, सहज रूप से आप निपट पाएंगे

२०. पाप कर्मो से रूचि घटेगी

२१. संग्रह की इच्छा कम होगी

२२. जीभ पर स्वतः नियंत्रण होगा

२३. मन और शरीर के विकारों का नाश होना शुरू होगा

सुनने में शायद आपमें से कई लोगो को ये अटपटे लगे, पर कई साधकों के अनुभव रूपी ये २३ पॉइंट्स मेने लिखे हैं, इनके अलावा भी अनगिनत लाभ होते हैं,

पर सावधान, लाभ के लिए करोगे जाप, तो कुछ समय के बाद मन्त्र की शक्ति क्षीण होगी और आप फिर ज्यों के त्यों,

मेहनत करते रहे और सतत ध्यान, जप करते रहे.

जय श्री राम

Vnita Kasnia Punjab

अपना अनुभव शेयर कर rhi हूं…. लोकडाउन की ही बात है तीन महीने पहले मैं एक महान आत्मा से सोशल मीडिया पर मिLi जो शिवजी के उपासक है मेंने उन्हें अपना हाथ दिखाया और अपने विवाह और सरकारी नौकरी से संबंधित सवाल किए… नौकरी से संबंधित सवाल पे उन्होंने एक गुरु मंत्र दिया और छह दिनों में 60000 बार उस मंत्र का जाप करने को कहा….

मेंने अनुसरण किया और मंत्र जाप पूर्ण होने पर उन्हें बताया उसके दो रोज बाद जब मे छत पर बैठा कुछ लिखने का प्रयास कर रहा था तो अचानक से मेरा हाथ बहुत तेजी से कांपने लगा, मुझे लगा कहीं ये लकवा तो नहीं डर से उस समय लकवे से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को मेंने उन्हीं कुछ मिनटों मे जी लिया के कैसे ये पूरे शरीर मे फैलेगा…

जब मेंने गुरूजी से इसके बारे मे बात की तो उन्होंने कहा ये मंत्र शक्ति है जो मुझ से सम्भल नहीं रही एक से दो दिन मे सब ठीक हो जाएगा वैसा ही हुआ…. हालाँकि मेंने रूद्राक्ष माला गलत तरीके से पकडी उसे अंगूठे और उसके पास वाली अंगुली से जपा, गुरु मुख के उपर से भी जाप किया जो गलत था पर मंत्र के प्रति मेरी आस्था और दोहराव सही था…..

मुझे नहीं पता ये सिद्ध होगा या नहीं या हुआ या नहीं… पर इससे मुझमे सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ जो मेरे लिए काफी थी

मुझे कयी बातें सीखने को मिली

अब मेंने माला सही तरीके से जपता हू

मुझे पता चला गुरु मंत्र किसी और को नहीं बताते…

मेरा हमेशा से मानना है कि ये संसार एक एनर्जी चला रही है…

अगर हम अच्छे कर्म करते है तो हमारे चारो तरफ एक सात्विक एनर्जी का आयाम रहता है…. और बुरे कर्मों से तामसिक एनर्जी का आयाम बन जाता है जो हमें और बुराई की तरफ ले जाता है….

जब भी मैं कहीं शिवाय, महादेव, रुद्राय सुनता हू एक एनर्जी मेरे शरीर मे प्रवाहित होती है हर बार मेरे हाथो के बाल खड़े हो जाते हैं और एक जोश आता है…

बोलो हर हर महादेव

500 से अधिक अपवोटो के लिए आप सब का तहे-दिल से शुक्रिया, हालाँकि मेंने 10 से ज्यादा अपवोटो की भी उम्मीद नहीं की थी ये मेरी शायद दूसरी पोस्ट है इससे पहली वाली पोस्ट पे शायद 5 या 6 अपवोट आए थे

पहली बार इतने अपवोट देख कर कितनी खुशी होती है कोई मुझ से पूछे….

जब लोगों की इतने अपवोटो पर धन्यवाद करते देखता था तो मुझे लगा मुझे भी करना चाहिए और संपादित करते समय पोस्ट मे कुछ गलती ना हो इसलिए पहले पुरानी किसी पोस्ट को संपादित कर के देखा….

यहा मैं थोड़ा और बताना chahungi जो पोस्ट लिखते समय मुझसे छुट gyi….

कंपन सिर्फ मेरे उसी हाथ की उँगलियों मे हुआ था जिससे मेंने माला जपी थी और जिन उँगलियों का इसमे सहयोग था….

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खंड में प्रायः यथावत आया है । इस पर प्रायः लोग शंका करते हैं अथवा अधिकतर लोगों को पता नहीं होता है कि वह शिवशतनाम कौन सा है, जिसका नारद जी ने जप किया ,जिससे उन्हें परम कल्याणमयी शांति की प्राप्ति हुई ?यहां सभी लोगों के लाभ हेतु वह शिवशतनाम मूल रूप में दिया जा रहा है । इस शिवशतनाम का उपदेश साक्षात् नारायण ने पार्वतीजी को भी दिया था , जिससे उन्हें भगवान शंकर पतिरूपमें प्राप्त हुए थे और वह उनकी साक्षात् अर्धांगनी बन गयीं।।। शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।।जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर ।जयेश्वर जयेशान जय सर्वज्ञ कामद ॥ १॥नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे ।अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ ॥ २॥जय पापहरानङ्गनिःसङ्गाभङ्गनाशन ।जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन ॥ ३॥जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित ।त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक ॥ ४॥शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय ।शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय ॥ ५॥सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर ।जयोग्ररूप मीमेश भव भर्ग जय प्रभो ॥ ६॥जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक ।रुण्डमालिन् कपालिंस्थं भुजङ्गाजिनभूषण ॥ ७॥दिगम्बर दिशां नाथ व्योमकश चिताम्पते ।जयाधार निराधार भस्माधार धराधर ॥ ८॥देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत ।वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव ॥ ९॥भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण ।त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते ॥ १०॥शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज ।नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन ॥ ११॥कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत् ।जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो ॥ १२॥पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत् ।दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल ॥ १३॥अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते ।सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर ॥ १४॥एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवकृतं तु ये ।शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह शृण्वन्ति च पठन्ति च ॥ १५॥न तापास्त्रिविधास्तेषां न शोको न रुजादयः ।ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते ॥ १६॥श्रीः प्रज्ञाऽऽरोग्यमायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नतिम् ।विद्या धर्मे मतिः शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशयः ॥ १७॥इति श्रीस्कन्दपुराणे सह्याद्रिखण्डेशिवाष्टोत्तरनामशतकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥🌹 भोले बाबा के 108 नाम 🌹भगवान शिव शतनाम-नामावली स्तोत्रम्!ॐ शिवाय नमः ॥ॐ महेश्वराय नमः ॥ॐ शंभवे नमः ॥ॐ पिनाकिने नमः ॥ॐ शशिशेखराय नमः ॥ॐ वामदेवाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ॐ कपर्दिने नमः ॥ॐ नीललोहिताय नमः ॥ॐ शंकराय नमः ॥ १० ॥ॐ शूलपाणये नमः ॥ॐ खट्वांगिने नमः ॥ॐ विष्णुवल्लभाय नमः ॥ॐ शिपिविष्टाय नमः ॥ॐ अंबिकानाथाय नमः ॥ॐ श्रीकंठाय नमः ॥ॐ भक्तवत्सलाय नमः ॥ॐ भवाय नमः ॥ॐ शर्वाय नमः ॥ॐ त्रिलोकेशाय नमः ॥ २० ॥ॐ शितिकंठाय नमः ॥ॐ शिवाप्रियाय नमः ॥ॐ उग्राय नमः ॥ॐ कपालिने नमः ॥ॐ कौमारये नमः ॥ॐ अंधकासुर सूदनाय नमः ॥ॐ गंगाधराय नमः ॥ॐ ललाटाक्षाय नमः ॥ॐ कालकालाय नमः ॥ॐ कृपानिधये नमः ॥ ३० ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐ परशुहस्ताय नमः ॥ॐ मृगपाणये नमः ॥ॐ जटाधराय नमः ॥ॐ क्तेलासवासिने नमः ॥ॐ कवचिने नमः ॥ॐ कठोराय नमः ॥ॐ त्रिपुरांतकाय नमः ॥ॐ वृषांकाय नमः ॥ॐ वृषभारूढाय नमः ॥ ४० ॥ॐ भस्मोद्धूलित विग्रहाय नमः ॥ॐ सामप्रियाय नमः ॥ॐ स्वरमयाय नमः ॥ॐ त्रयीमूर्तये नमः ॥ॐ अनीश्वराय नमः ॥ॐ सर्वज्ञाय नमः ॥ॐ परमात्मने नमः ॥ॐ सोमसूर्याग्नि लोचनाय नमः ॥ॐ हविषे नमः ॥ॐ यज्ञमयाय नमः ॥ ५० ॥ॐ सोमाय नमः ॥ॐ पंचवक्त्राय नमः ॥ॐ सदाशिवाय नमः ॥ॐ विश्वेश्वराय नमः ॥ॐ वीरभद्राय नमः ॥ॐ गणनाथाय नमः ॥ॐ प्रजापतये नमः ॥ॐ हिरण्यरेतसे नमः ॥ॐ दुर्धर्षाय नमः ॥ॐ गिरीशाय नमः ॥ ६० ॥ॐ गिरिशाय नमः ॥ॐ अनघाय नमः ॥ॐ भुजंग भूषणाय नमः ॥ॐ भर्गाय नमः ॥ॐ गिरिधन्वने नमः ॥ॐ गिरिप्रियाय नमः ॥ॐ कृत्तिवाससे नमः ॥ॐ पुरारातये नमः ॥ॐ भगवते नमः ॥ॐ प्रमधाधिपाय नमः ॥ ७० ॥ॐ मृत्युंजयाय नमः ॥ॐ सूक्ष्मतनवे नमः ॥ॐ जगद्व्यापिने नमः ॥ॐ जगद्गुरवे नमः ॥ॐ व्योमकेशाय नमः ॥ॐ महासेन जनकाय नमः ॥ॐ चारुविक्रमाय नमः ॥ॐ रुद्राय नमः ॥ॐ भूतपतये नमः ॥ॐ स्थाणवे नमः ॥ ८० ॥ॐ अहिर्भुथ्न्याय नमः ॥ॐ दिगंबराय नमः ॥ॐ अष्टमूर्तये नमः ॥ॐ अनेकात्मने नमः ॥ॐ स्वात्त्विकाय नमः ॥ॐ शुद्धविग्रहाय नमः ॥ॐ शाश्वताय नमः ॥ॐ खंडपरशवे नमः ॥ॐ अजाय नमः ॥ॐ पाशविमोचकाय नमः ॥ ९० ॥ॐ मृडाय नमः ॥ॐ पशुपतये नमः ॥ॐ देवाय नमः ॥ॐ महादेवाय नमः ॥ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ हरये नमः ॥ॐ पूषदंतभिदे नमः ॥ॐ अव्यग्राय नमः ॥ॐ दक्षाध्वरहराय नमः ॥ॐ हराय नमः ॥ १०० ॥ॐ भगनेत्रभिदे नमः ॥ॐ अव्यक्ताय नमः ॥ॐ सहस्राक्षाय नमः ॥ॐ सहस्रपादे नमः ॥ॐ अपपर्गप्रदाय नमः ॥ॐ अनंताय नमः ॥ॐ तारकाय नमः ॥ॐ परमेश्वराय नमः ॥ १०८ ॥🙏🏼 हर हर महादेव जी 🙏🏼

🌺 जिस समय नारद जी का मोह भंग हो गया था और नारद जी ने विष्णु जी को श्राप देने के बाद अपने पाप का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा तो विष्णु जी ने नारद जी को काशी में जाकर कौन से शिव स्तोत्र का जप करने को कहा था ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब (1)शिव तांडव स्तोत्र (2)शिव शतनाम स्तोत्र (3)शिव सहस्त्रनाम स्तोत्र (4)शिव पंचाक्षर स्तोत्र (5)नील रुद्र शुक्त 🌹 इसका सही उत्तर है शिव शतनाम स्तोत्र 🌹 यह सब देखकर नारद जी की बुद्धि भी शांत और शुद्ध हो गई । उन्हें सारी बीती बातें ध्यान में आ गयीं । तब मुनि अत्यंत भयभीत होकर भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे कि- भगवन ! मेरा शाप मिथ्या हो जाये और मेरे पापों कि अब सीमा नहीं रही , क्योंकि मैंने आपको अनेक दुर्वचन कहे । इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि - जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत विश्रामाँ ।। कोउ नहीं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें ।। जेहि पर कृपा न करहि पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी ।। विष्णु जी ने कहा नारद जी आप जाकर शिवजी के शिवशतनाम का जप कीजिये , इससे आपके हृदय में तुरंत शांति होगी । इ...

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