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क्या आज्ञा चक्र सच है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦जी हाँ आज्ञाचक्र एक सार्वभौमिक सत्य है और यह सभी मनुष्यों में होता है, हमारे माथे के एकदम बीचों-बीच जहाँ हमारी अतिसूक्ष्म इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना नाड़ियां मिलती हैं लेकिन दुर्भाग्य से यह आज्ञाचक्र कुछ ही सिद्ध योगियों का पूर्ण जागृत होता है और बाकि कुछ लोगों में यह पूर्ण जागृत न होकर केवल स्पंदित अवस्था में रहता है और इसी अवस्था से पूर्ण जागृत अवस्था में आपको आने के लिए निरंतर साधना-रत रहना पड़ता है, ध्यान और समाधि की चिर-अवस्था को प्राप्त होना पड़ता है | अध्यात्म क्षेत्र के विद्वान और साधक इस आज्ञा चक्र को तीसरी आँख भी बोलते हैं जिसके खुलने से इस ब्रहांड के कई सारे अनदेखे रहस्य आप साक्षात देख पाने में सक्षम हो जाते हैं, वहीँ हमारे वैज्ञानिक विचारधारा के लोग इस आज्ञाचक्र को पीनियल या पिट्यूटरी ग्रंथि भी बोलते हैं, लेकिन आज तक इस ग्रंथि का होना और इसका सही कार्य उद्देश्य वैज्ञानिक पता नहीं कर सके हैं |यही वह चक्र है जो साधना में सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है क्यूंकि बाकी के सारे चक्र जैसे मूलाधार, स्वाधिष्ठान, विशुद्धि आदि इसी अजना चक्र से जुड़े होते हैं और ऊर्जा प्रवाह के जरिये यह चक्र एक-एक करके बाकी के चक्रों को बेधता हुआ, शुद्धि करता हुआ उनको जाग्रत करता जाता है | बताया गया है की पूर्वजन्म में अगर आपकी साधना रही होगी तो इस जनम में साधना आज्ञाचक्र से ही शुरू होगी लेकिन बाकी के चक्र स्वतः खुलते जाएंगे | वैसे जितना ऊर्जा स्पंदन का अनुभव मैंने आज्ञाचक्र पर किया है उससे उलट अनाहत चक्र आपको कुछ ऐसा अनुभव प्रतीत करवाएगा जैसे की आपके सीने के ऊपर कोई पहिया हवा में लगातार घूमता रहता हो लेकिन यहाँ भी आज्ञाचक्र ही आगे रहता है जैसे की वह सभी चक्रों का राजा हो |Image from Googleयहाँ मैंने आज्ञाचक्र सम्बंधित वह विशेषताएं संदर्भित नहीं कीं जो मैंने इंटरनेट पर काफी कुछ हद तक पढ़ीं या कई किताबों में भी इसका विस्तृत विवरण है, यूट्यूब वीडिओज़ भी एक से बढ़कर एक, उनकी तो क्या ही कहें लगता है जैसे की एक्स-मैन की तरह पावर्स आपके पास आने ही वाली हैं तो उस सबका यहाँ लिखना मुझे ठीक नहीं लगा क्यूंकि वास्तविक अनुभव बिकुल ही अलग है हालांकि सिद्धियों और शक्तियों की प्राप्ति निश्चित ही है अगर आप सफल साधक हो लेकिन ये सिद्धियां और शक्तियां ऐसे काम नहीं करतीं जैसे की फिल्मों में देखते हैं या फिर जैसा की कई यूट्यूब विडोयोज़ में कुछ ऐसा ज्ञान पेला गया है | जब यह सब कुछ आपके साथ होगा तो आप तब मेरी बातों का मतलब पक्का समझ जायेंगे | एक बात और जब आज्ञाचक्र ध्यान-साधना शुरू करें तो मंत्र चुनाव अवश्य थोड़ा सावधानी से करें क्यूंकि सारा कुछ इस मंत्र की ऊर्जा से समबन्धित है, जैसा आपका मंत्र वैसा ही आपका मन और वैसे ही आपके अनुभव होंगे, वैसे ही सपने होंगे, वैसा ही स्वभाव हो जायेगा, वैसा ही शरीर होने लगेगा |एक नितांत सच यह है की जिसको भी कुछ ऐसा देखना है जो ब्रहाण्ड के रहस्य्मयी वातावरण का अनुभव एवं साक्षात दर्शन करवाता है तो वह यह आज्ञाचक्र ही है, तो जितना आप आज्ञाचक्र पर ध्यान साधने में पारंगत होते जायेंगे उतने ही नित नए रहस्यों और आयामों को आप अपनी खुली आंखों से देख पाएंगे | चूँकि बंद आँखों से ध्यान करते समय लोगों को कई बार लगता है की सब भ्रम है या मष्तिष्क में होने वाली रासायनिक, यौगिक क्रियाओं का परिणाम है तो मैं कहूंगा की आप खुली आँखों से त्राटक का अभ्यास कीजिये और एक दिन आएगा जब आपके काफी भ्रम दूर होने लगेंगे, आपको दिखेगा की कैसे परमेश्वर निराकार होते हुए भी हमको साक्षात दीखते हैं, कैसे इसी पृथ्वी पर एक अदृश्य अवस्था में कुछ अलग ही संसार बसा हुआ है और ये वैज्ञानिक इनको ढूंढने अंतरिक्ष में निकल पड़ते हैं जबकि सब यहीं है हमारे आसपास बस आपको वह अवस्था प्राप्त करनी होगी ये सभी रहस्यों को देखने, समझने और जानने के लिए |Image from Googleसबसे पहले एक बात की जिस किसी भाई को संशय है की भगवान्, ईश्वर, अल्लाह, गॉड है ही नहीं बस यह पृथ्वी और इसका जीवन एक सतत प्रक्रिया के तहत हुआ है तो उनको तो यह आज्ञाचक्र और इसके द्वारा त्राटक क्रिया जरूर जरूर करनी चाहिए ताकि उनकी यह सोंच और अविश्वास भगवान् प्रति दूर हो सके | वो सभी भाई जो आज्ञाचक्र पर ध्यान करते हैं, त्राटक करते हैं खासकर खुली आँखों से वो अवश्य ही मेरी बातों से सशर्त सहमत होंगे | कितने ही लोगों से सुना है अमुक संत - महात्मा त्रिकालदर्शी हैं थे तो वो सही सुना है क्यूंकि यही वो सिद्ध पुरुष हैं जो साधना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करते हुए स्वयं भगवान् तुल्य होजाते हैं, ना केवल इनका आज्ञाचक्र पूर्णतः जाग्रत होता है बल्कि सभी और बाकि के चक्र भी इनके जागृत होते हैं |आज्ञाचक्र की वह विशेषता जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो यह की जब यह स्पंदित हो जाग्रत अवस्था की और त्वरित हो और लगातार 24 घंटे - सातों दिन - बारह महीने यह काम करता है और बावजूद इसके साधक को इससे कोई ख़ास परेशानी नहीं महसूस होती बल्कि एक अलग ही तरह का आनंद, नशा, शरीर पृथ्वी से कुछ फ़ीट ऊपर हवा में, ऊर्जा का औरा या कहो की ऊर्जा का घेरा चेहरे के चारों तरफ, हाथों से, पैरों से निकलता, बहता और फिर वापस आज्ञाचक्र केंद्र में वापिस टक्कर मारता रहता है | ऐसे में अगर किसी को इन सब चक्रों के बारे में अगर कुछ भी जानकारी न हो तो यह अमुक व्यक्ति के लिए परेशानी का कारण बन सकता है इसलिए पहले से ही यह सब जानकारी रखनी होगी तब ही आगे बढ़ना है आपको |BAL Vnita mahila ashramकम से कम आज जब इन सभी अनुभवों को यहाँ लिखते हुए मुझे इस बात की ख़ुशी है की भगवान् के होने और ना होने से सम्बंधित मेरा प्रश्न अब शेष नहीं रह गया बल्कि उसके आगे भी कई ऐसी बातें हैं जो आप इस आज्ञाचक्र के द्वारा जान सकते हो, भगवान् ने मनुष्य को बनाया ही इसी सबके लिए है लेकिन साथ ही माया में भी उलझा रखा है ताकि पात्रता जांची-परखी जा सके और उसी के अनुरूप पात्र साधक को ज्ञान और सिद्धियां प्राप्त हो सकें | तो हो सके तो खुद के बारे में जानना शुरू करो, साधना में रम जाओ चक्रों को जगाओ | जागो बंधू जागो !धन्यवाद !ॐ नमः शिवाय !

जी हाँ आज्ञाचक्र एक सार्वभौमिक सत्य है और यह सभी मनुष्यों में होता है, हमारे माथे के एकदम बीचों-बीच जहाँ हमारी अतिसूक्ष्म इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना नाड़ियां मिलती हैं लेकिन दुर्भाग्य से यह आज्ञाचक्र कुछ ही सिद्ध योगियों का पूर्ण जागृत होता है और बाकि कुछ लोगों में यह पूर्ण जागृत न होकर केवल स्पंदित अवस्था में रहता है और इसी अवस्था से पूर्ण जागृत अवस्था में आपको आने के लिए निरंतर साधना-रत रहना पड़ता है, ध्यान और समाधि की चिर-अवस्था को प्राप्त होना पड़ता है | अध्यात्म क्षेत्र के विद्वान और साधक इस आज्ञा चक्र को तीसरी आँख भी बोलते हैं जिसके खुलने से इस ब्रहांड के कई सारे अनदेखे रहस्य आप साक्षात देख पाने में सक्षम हो जाते हैं, वहीँ हमारे वैज्ञानिक विचारधारा के लोग इस आज्ञाचक्र को पीनियल या पिट्यूटरी ग्रंथि भी बोलते हैं, लेकिन आज तक इस ग्रंथि का होना और इसका सही कार्य उद्देश्य वैज्ञानिक पता नहीं कर सके हैं |

यही वह चक्र है जो साधना में सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है क्यूंकि बाकी के सारे चक्र जैसे मूलाधार, स्वाधिष्ठान, विशुद्धि आदि इसी अजना चक्र से जुड़े होते हैं और ऊर्जा प्रवाह के जरिये यह चक्र एक-एक करके बाकी के चक्रों को बेधता हुआ, शुद्धि करता हुआ उनको जाग्रत करता जाता है | बताया गया है की पूर्वजन्म में अगर आपकी साधना रही होगी तो इस जनम में साधना आज्ञाचक्र से ही शुरू होगी लेकिन बाकी के चक्र स्वतः खुलते जाएंगे | वैसे जितना ऊर्जा स्पंदन का अनुभव मैंने आज्ञाचक्र पर किया है उससे उलट अनाहत चक्र आपको कुछ ऐसा अनुभव प्रतीत करवाएगा जैसे की आपके सीने के ऊपर कोई पहिया हवा में लगातार घूमता रहता हो लेकिन यहाँ भी आज्ञाचक्र ही आगे रहता है जैसे की वह सभी चक्रों का राजा हो |

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यहाँ मैंने आज्ञाचक्र सम्बंधित वह विशेषताएं संदर्भित नहीं कीं जो मैंने इंटरनेट पर काफी कुछ हद तक पढ़ीं या कई किताबों में भी इसका विस्तृत विवरण है, यूट्यूब वीडिओज़ भी एक से बढ़कर एक, उनकी तो क्या ही कहें लगता है जैसे की एक्स-मैन की तरह पावर्स आपके पास आने ही वाली हैं तो उस सबका यहाँ लिखना मुझे ठीक नहीं लगा क्यूंकि वास्तविक अनुभव बिकुल ही अलग है हालांकि सिद्धियों और शक्तियों की प्राप्ति निश्चित ही है अगर आप सफल साधक हो लेकिन ये सिद्धियां और शक्तियां ऐसे काम नहीं करतीं जैसे की फिल्मों में देखते हैं या फिर जैसा की कई यूट्यूब विडोयोज़ में कुछ ऐसा ज्ञान पेला गया है | जब यह सब कुछ आपके साथ होगा तो आप तब मेरी बातों का मतलब पक्का समझ जायेंगे | एक बात और जब आज्ञाचक्र ध्यान-साधना शुरू करें तो मंत्र चुनाव अवश्य थोड़ा सावधानी से करें क्यूंकि सारा कुछ इस मंत्र की ऊर्जा से समबन्धित है, जैसा आपका मंत्र वैसा ही आपका मन और वैसे ही आपके अनुभव होंगे, वैसे ही सपने होंगे, वैसा ही स्वभाव हो जायेगा, वैसा ही शरीर होने लगेगा |

एक नितांत सच यह है की जिसको भी कुछ ऐसा देखना है जो ब्रहाण्ड के रहस्य्मयी वातावरण का अनुभव एवं साक्षात दर्शन करवाता है तो वह यह आज्ञाचक्र ही है, तो जितना आप आज्ञाचक्र पर ध्यान साधने में पारंगत होते जायेंगे उतने ही नित नए रहस्यों और आयामों को आप अपनी खुली आंखों से देख पाएंगे | चूँकि बंद आँखों से ध्यान करते समय लोगों को कई बार लगता है की सब भ्रम है या मष्तिष्क में होने वाली रासायनिक, यौगिक क्रियाओं का परिणाम है तो मैं कहूंगा की आप खुली आँखों से त्राटक का अभ्यास कीजिये और एक दिन आएगा जब आपके काफी भ्रम दूर होने लगेंगे, आपको दिखेगा की कैसे परमेश्वर निराकार होते हुए भी हमको साक्षात दीखते हैं, कैसे इसी पृथ्वी पर एक अदृश्य अवस्था में कुछ अलग ही संसार बसा हुआ है और ये वैज्ञानिक इनको ढूंढने अंतरिक्ष में निकल पड़ते हैं जबकि सब यहीं है हमारे आसपास बस आपको वह अवस्था प्राप्त करनी होगी ये सभी रहस्यों को देखने, समझने और जानने के लिए |

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सबसे पहले एक बात की जिस किसी भाई को संशय है की भगवान्, ईश्वर, अल्लाह, गॉड है ही नहीं बस यह पृथ्वी और इसका जीवन एक सतत प्रक्रिया के तहत हुआ है तो उनको तो यह आज्ञाचक्र और इसके द्वारा त्राटक क्रिया जरूर जरूर करनी चाहिए ताकि उनकी यह सोंच और अविश्वास भगवान् प्रति दूर हो सके | वो सभी भाई जो आज्ञाचक्र पर ध्यान करते हैं, त्राटक करते हैं खासकर खुली आँखों से वो अवश्य ही मेरी बातों से सशर्त सहमत होंगे | कितने ही लोगों से सुना है अमुक संत - महात्मा त्रिकालदर्शी हैं थे तो वो सही सुना है क्यूंकि यही वो सिद्ध पुरुष हैं जो साधना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करते हुए स्वयं भगवान् तुल्य होजाते हैं, ना केवल इनका आज्ञाचक्र पूर्णतः जाग्रत होता है बल्कि सभी और बाकि के चक्र भी इनके जागृत होते हैं |

आज्ञाचक्र की वह विशेषता जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो यह की जब यह स्पंदित हो जाग्रत अवस्था की और त्वरित हो और लगातार 24 घंटे - सातों दिन - बारह महीने यह काम करता है और बावजूद इसके साधक को इससे कोई ख़ास परेशानी नहीं महसूस होती बल्कि एक अलग ही तरह का आनंद, नशा, शरीर पृथ्वी से कुछ फ़ीट ऊपर हवा में, ऊर्जा का औरा या कहो की ऊर्जा का घेरा चेहरे के चारों तरफ, हाथों से, पैरों से निकलता, बहता और फिर वापस आज्ञाचक्र केंद्र में वापिस टक्कर मारता रहता है | ऐसे में अगर किसी को इन सब चक्रों के बारे में अगर कुछ भी जानकारी न हो तो यह अमुक व्यक्ति के लिए परेशानी का कारण बन सकता है इसलिए पहले से ही यह सब जानकारी रखनी होगी तब ही आगे बढ़ना है आपको |

BAL Vnita mahila ashram

कम से कम आज जब इन सभी अनुभवों को यहाँ लिखते हुए मुझे इस बात की ख़ुशी है की भगवान् के होने और ना होने से सम्बंधित मेरा प्रश्न अब शेष नहीं रह गया बल्कि उसके आगे भी कई ऐसी बातें हैं जो आप इस आज्ञाचक्र के द्वारा जान सकते हो, भगवान् ने मनुष्य को बनाया ही इसी सबके लिए है लेकिन साथ ही माया में भी उलझा रखा है ताकि पात्रता जांची-परखी जा सके और उसी के अनुरूप पात्र साधक को ज्ञान और सिद्धियां प्राप्त हो सकें | तो हो सके तो खुद के बारे में जानना शुरू करो, साधना में रम जाओ चक्रों को जगाओ | जागो बंधू जागो !

धन्यवाद !
ॐ नमः शिवाय !

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🌺जिस समय नारद जी का मोह भंग हो गया था और नारद जी ने विष्णु जी को श्राप देने के बाद अपने पाप का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा तो विष्णु जी ने नारद जी को काशी में जाकर कौन से शिव स्तोत्र का जप करने को कहा था ?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब(1)शिव तांडव स्तोत्र(2)शिव शतनाम स्तोत्र(3)शिव सहस्त्रनाम स्तोत्र(4)शिव पंचाक्षर स्तोत्र(5)नील रुद्र शुक्त🌹 इसका सही उत्तर है शिव शतनाम स्तोत्र 🌹यह सब देखकर नारद जी की बुद्धि भी शांत और शुद्ध हो गई ।उन्हें सारी बीती बातें ध्यान में आ गयीं । तब मुनि अत्यंत भयभीत होकर भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे कि- भगवन ! मेरा शाप मिथ्या हो जाये और मेरे पापों कि अब सीमा नहीं रही , क्योंकि मैंने आपको अनेक दुर्वचन कहे ।इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि -जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत विश्रामाँ ।।कोउ नहीं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें ।।जेहि पर कृपा न करहि पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी ।।विष्णु जी ने कहा नारद जी आप जाकर शिवजी के शिवशतनाम का जप कीजिये , इससे आपके हृदय में तुरंत शांति होगी । इससे आपके दोष-पाप मिट जायँगे और पूर्ण ज्ञान-वैराग्य तथा भक्ति-की राशि सदा के लिए आपके हृदय में स्थित हो जायगी । शिवजी मेरे सर्वाधिक प्रिय हैं , यह विश्वास भूलकर भी न छोड़ना । वे जिस पर कृपा नहीं करते उसे मेरी भक्ति प्राप्त नहीं होती।यह प्रसंग मानस तथा शिवपुराण के रूद्रसंहिता के सृष्टि - खंड में प्रायः यथावत आया है । इस पर प्रायः लोग शंका करते हैं अथवा अधिकतर लोगों को पता नहीं होता है कि वह शिवशतनाम कौन सा है, जिसका नारद जी ने जप किया ,जिससे उन्हें परम कल्याणमयी शांति की प्राप्ति हुई ?यहां सभी लोगों के लाभ हेतु वह शिवशतनाम मूल रूप में दिया जा रहा है । इस शिवशतनाम का उपदेश साक्षात् नारायण ने पार्वतीजी को भी दिया था , जिससे उन्हें भगवान शंकर पतिरूपमें प्राप्त हुए थे और वह उनकी साक्षात् अर्धांगनी बन गयीं।।। शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।।जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर ।जयेश्वर जयेशान जय सर्वज्ञ कामद ॥ १॥नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे ।अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ ॥ २॥जय पापहरानङ्गनिःसङ्गाभङ्गनाशन ।जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन ॥ ३॥जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित ।त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक ॥ ४॥शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय ।शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय ॥ ५॥सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर ।जयोग्ररूप मीमेश भव भर्ग जय प्रभो ॥ ६॥जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक ।रुण्डमालिन् कपालिंस्थं भुजङ्गाजिनभूषण ॥ ७॥दिगम्बर दिशां नाथ व्योमकश चिताम्पते ।जयाधार निराधार भस्माधार धराधर ॥ ८॥देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत ।वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव ॥ ९॥भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण ।त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते ॥ १०॥शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज ।नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन ॥ ११॥कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत् ।जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो ॥ १२॥पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत् ।दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल ॥ १३॥अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते ।सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर ॥ १४॥एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवकृतं तु ये ।शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह शृण्वन्ति च पठन्ति च ॥ १५॥न तापास्त्रिविधास्तेषां न शोको न रुजादयः ।ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते ॥ १६॥श्रीः प्रज्ञाऽऽरोग्यमायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नतिम् ।विद्या धर्मे मतिः शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशयः ॥ १७॥इति श्रीस्कन्दपुराणे सह्याद्रिखण्डेशिवाष्टोत्तरनामशतकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥🌹 भोले बाबा के 108 नाम 🌹भगवान शिव शतनाम-नामावली स्तोत्रम्!ॐ शिवाय नमः ॥ॐ महेश्वराय नमः ॥ॐ शंभवे नमः ॥ॐ पिनाकिने नमः ॥ॐ शशिशेखराय नमः ॥ॐ वामदेवाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ॐ कपर्दिने नमः ॥ॐ नीललोहिताय नमः ॥ॐ शंकराय नमः ॥ १० ॥ॐ शूलपाणये नमः ॥ॐ खट्वांगिने नमः ॥ॐ विष्णुवल्लभाय नमः ॥ॐ शिपिविष्टाय नमः ॥ॐ अंबिकानाथाय नमः ॥ॐ श्रीकंठाय नमः ॥ॐ भक्तवत्सलाय नमः ॥ॐ भवाय नमः ॥ॐ शर्वाय नमः ॥ॐ त्रिलोकेशाय नमः ॥ २० ॥ॐ शितिकंठाय नमः ॥ॐ शिवाप्रियाय नमः ॥ॐ उग्राय नमः ॥ॐ कपालिने नमः ॥ॐ कौमारये नमः ॥ॐ अंधकासुर सूदनाय नमः ॥ॐ गंगाधराय नमः ॥ॐ ललाटाक्षाय नमः ॥ॐ कालकालाय नमः ॥ॐ कृपानिधये नमः ॥ ३० ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐ परशुहस्ताय नमः ॥ॐ मृगपाणये नमः ॥ॐ जटाधराय नमः ॥ॐ क्तेलासवासिने नमः ॥ॐ कवचिने नमः ॥ॐ कठोराय नमः ॥ॐ त्रिपुरांतकाय नमः ॥ॐ वृषांकाय नमः ॥ॐ वृषभारूढाय नमः ॥ ४० ॥ॐ भस्मोद्धूलित विग्रहाय नमः ॥ॐ सामप्रियाय नमः ॥ॐ स्वरमयाय नमः ॥ॐ त्रयीमूर्तये नमः ॥ॐ अनीश्वराय नमः ॥ॐ सर्वज्ञाय नमः ॥ॐ परमात्मने नमः ॥ॐ सोमसूर्याग्नि लोचनाय नमः ॥ॐ हविषे नमः ॥ॐ यज्ञमयाय नमः ॥ ५० ॥ॐ सोमाय नमः ॥ॐ पंचवक्त्राय नमः ॥ॐ सदाशिवाय नमः ॥ॐ विश्वेश्वराय नमः ॥ॐ वीरभद्राय नमः ॥ॐ गणनाथाय नमः ॥ॐ प्रजापतये नमः ॥ॐ हिरण्यरेतसे नमः ॥ॐ दुर्धर्षाय नमः ॥ॐ गिरीशाय नमः ॥ ६० ॥ॐ गिरिशाय नमः ॥ॐ अनघाय नमः ॥ॐ भुजंग भूषणाय नमः ॥ॐ भर्गाय नमः ॥ॐ गिरिधन्वने नमः ॥ॐ गिरिप्रियाय नमः ॥ॐ कृत्तिवाससे नमः ॥ॐ पुरारातये नमः ॥ॐ भगवते नमः ॥ॐ प्रमधाधिपाय नमः ॥ ७० ॥ॐ मृत्युंजयाय नमः ॥ॐ सूक्ष्मतनवे नमः ॥ॐ जगद्व्यापिने नमः ॥ॐ जगद्गुरवे नमः ॥ॐ व्योमकेशाय नमः ॥ॐ महासेन जनकाय नमः ॥ॐ चारुविक्रमाय नमः ॥ॐ रुद्राय नमः ॥ॐ भूतपतये नमः ॥ॐ स्थाणवे नमः ॥ ८० ॥ॐ अहिर्भुथ्न्याय नमः ॥ॐ दिगंबराय नमः ॥ॐ अष्टमूर्तये नमः ॥ॐ अनेकात्मने नमः ॥ॐ स्वात्त्विकाय नमः ॥ॐ शुद्धविग्रहाय नमः ॥ॐ शाश्वताय नमः ॥ॐ खंडपरशवे नमः ॥ॐ अजाय नमः ॥ॐ पाशविमोचकाय नमः ॥ ९० ॥ॐ मृडाय नमः ॥ॐ पशुपतये नमः ॥ॐ देवाय नमः ॥ॐ महादेवाय नमः ॥ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ हरये नमः ॥ॐ पूषदंतभिदे नमः ॥ॐ अव्यग्राय नमः ॥ॐ दक्षाध्वरहराय नमः ॥ॐ हराय नमः ॥ १०० ॥ॐ भगनेत्रभिदे नमः ॥ॐ अव्यक्ताय नमः ॥ॐ सहस्राक्षाय नमः ॥ॐ सहस्रपादे नमः ॥ॐ अपपर्गप्रदाय नमः ॥ॐ अनंताय नमः ॥ॐ तारकाय नमः ॥ॐ परमेश्वराय नमः ॥ १०८ ॥🙏🏼 हर हर महादेव जी 🙏🏼

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