गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को भयंकर अभिशाप क्यों दिया?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबयुद्ध के पश्चात् जब गांधारी ने मृतकों के शव देखे, तब वह शोक के मारे अत्यंत व्याकुल हो उठीं। रणभूमि में अपने पुत्रों को मरा हुआ देखकर वह क्रोध से भर गईं। चूंकि गांधारी इस बात को समझती थी कि श्री कृष्ण चाहते तो युद्ध को रोक सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने पुत्रों के मृत्यु का दोष श्री कृष्ण पर मढ़ दिया और उन्हें भयंकर शाप दे दिया। गांधारी बोलीं -उद्धरण -श्रीकृष्ण! जनार्दन! पाण्डव और धृतराष्ट्रके पुत्र आपसमें लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? ।। ३९ ।।महाबाहु मधुसूदन! तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत-से सेवक और सैनिक थे। तुम महान् बलमें प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षोंसे अपनी बात मनवा लेनेकी सामर्थ्य तुममें मौजूद थी। तुमने वेद-शास्त्रों और महात्माओंकी बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छासे कुरुकुलके नाशकी उपेक्षा की—जानबूझकर इस वंशका विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो ।। ४०-४१ ।।इसके बाद उन्होंने श्री कृष्ण को शाप दिया। वे बोलीं -उद्धरण -चक्र और गदा धारण करनेवाले केशव! मैंने पतिकी सेवासे जो कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबलसे तुम्हें शाप दे रही हूँ ।। ४२ ।।गोविन्द! तुमने आपसमें मारकाट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों और पाण्डवोंकी उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओंका भी विनाश कर डालोगे ।। ४३ ।।मधुसूदन! आजसे छत्तीसवाँ वर्ष उपस्थित होनेपर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपसमें लड़कर मर जायँगे। तुम सबसे अपरिचित और लोगोंकी आँखोंसे ओझल होकर अनाथके समान वनमें विचरोगे और किसी निन्दित उपायसे मृत्युको प्राप्त होओगे ।। ४४-४५ ।।इन भरतवंशकी स्त्रियोंके समान तुम्हारे कुलकी स्त्रियाँ भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओंके मारे जानेपर इसी तरह सगे-सम्बन्धियोंकी लाशोंपर गिरेंगी ।। ४६ ।।यह उद्धरण व्यास रचित महाभारत के गीता प्रेस (हिंदी अनुवादित संस्करण) से लिए गए हैं।
युद्ध के पश्चात् जब गांधारी ने मृतकों के शव देखे, तब वह शोक के मारे अत्यंत व्याकुल हो उठीं। रणभूमि में अपने पुत्रों को मरा हुआ देखकर वह क्रोध से भर गईं। चूंकि गांधारी इस बात को समझती थी कि श्री कृष्ण चाहते तो युद्ध को रोक सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने पुत्रों के मृत्यु का दोष श्री कृष्ण पर मढ़ दिया और उन्हें भयंकर शाप दे दिया। गांधारी बोलीं -
उद्धरण -
श्रीकृष्ण! जनार्दन! पाण्डव और धृतराष्ट्रके पुत्र आपसमें लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? ।। ३९ ।।
महाबाहु मधुसूदन! तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत-से सेवक और सैनिक थे। तुम महान् बलमें प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षोंसे अपनी बात मनवा लेनेकी सामर्थ्य तुममें मौजूद थी। तुमने वेद-शास्त्रों और महात्माओंकी बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छासे कुरुकुलके नाशकी उपेक्षा की—जानबूझकर इस वंशका विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो ।। ४०-४१ ।।
इसके बाद उन्होंने श्री कृष्ण को शाप दिया। वे बोलीं -
उद्धरण -
चक्र और गदा धारण करनेवाले केशव! मैंने पतिकी सेवासे जो कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबलसे तुम्हें शाप दे रही हूँ ।। ४२ ।।
गोविन्द! तुमने आपसमें मारकाट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों और पाण्डवोंकी उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओंका भी विनाश कर डालोगे ।। ४३ ।।
मधुसूदन! आजसे छत्तीसवाँ वर्ष उपस्थित होनेपर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपसमें लड़कर मर जायँगे। तुम सबसे अपरिचित और लोगोंकी आँखोंसे ओझल होकर अनाथके समान वनमें विचरोगे और किसी निन्दित उपायसे मृत्युको प्राप्त होओगे ।। ४४-४५ ।।
इन भरतवंशकी स्त्रियोंके समान तुम्हारे कुलकी स्त्रियाँ भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओंके मारे जानेपर इसी तरह सगे-सम्बन्धियोंकी लाशोंपर गिरेंगी ।। ४६ ।।
यह उद्धरण व्यास रचित महाभारत के गीता प्रेस (हिंदी अनुवादित संस्करण) से लिए गए हैं।
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