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ध्यान साधना कैसे करे - Dhyan Sadhana Kaise Kare! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦ध्यान साधना कैसे करे - Dhyan Sadhana Kaise Kare!भारत द्वारा दुनिया को दिए गए कुछ नायाब तोहफों में से एक ध्यान साधना भी है. ध्यान साधना एक ऐसी अद्भुत विधि है जो हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारती है. मन की एकाग्रता से आने वाली शांति को पाने का रास्ता ही ध्यान है और यहीं ध्यान अष्टांग योग के अंतिम चरण में समाधि की अवस्था पा लेता है. ध्यान योग का एक ऐसा महत्वपूर्ण तत्व है जिसके माध्यम से तन, मन और आत्मा के बीच एक सुंदर औयर लयात्मक संबंध का निर्माण होता है. अंग्रेजी में इसे मेडिटेशन कहते हैं. ध्यान चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाने वाले बल्ब की तरह है. योगियों का ध्यान सूर्य के प्रकाश की तरह होता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम ध्यान साधना करने के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालें ताकि इस विषय में लोगों को जागरुक किया जा सके.कैसे करें शुरुआत?मेडिटेशन के लिए सुबह का समय उत्तम है. मेडिटेशन करने से पहले ध्यान साधना जरूर करें, इससे सांस स्थिर होती है. इसके लिए चाहें तो आप योग का भस्त्रिका और कपालभाती कर सकते हैं. आप इसके अलावा शरीर को थकाने के लिए कुछ और भी कर सकते हैं. याद रखें कि मेडिटेशन को पूर्ण करने के भी आपकों ध्यान साधना जरूर करना है.1. प्रार्थना से करें शुरुआत-अब आप साफ वातावरण में कुश के आसन पर बैठें. इसके बाद हृदय के पास दोनों हाथ जोड़ कर अपने इष्टदेव को याद करें और मन ही मन में ध्यान साधना को पूर्ण करने के लिए उनसे आर्शीवाद लें, क्योंकि किसी भी कार्य के पूर्ण होने में आपके इष्टदेव का योगदान महत्वपूर्ण होता है.2. शरीर की हलचलों को नजरअंदाज करें-इसके बाद सिद्धासन में बैठकर बाएं हाथ को बाएं घुटने पर और दाएं हाथ को दाएं घुटने पर रखें. रीढ़ को सीधे रखते हुए गहरी सांस ले और छोड़ें. अपने शरीर की सभी हलचलों पर ध्यान देते हुए आपके आसपास जो भी घटित हो रहा है उस पर भी ध्यान दें.3. पूरा ध्यान साँसों पर केन्द्रित करें-मन को एकाग्र और चित्त को स्थिर करने का सर्वाधिक लोकप्रिय और आसान तरीका है साँसों पर ध्यान केन्द्रित करना. इसलिए अब आप अपनी सांसों को छोडने और लेने की प्रक्रिया पर ध्यान दें. सांसों की ओर ध्यान देने से चित्त शांत होने लगेगा और चित्त का शांत होना ध्यान की शुरुआत के लिए बेहद जरूरी है.4. महसूस होने के लिए तैयार हों-जब आप अपने पूरे ध्यान को अपने साँसों पर केन्द्रित करने में सफल हो जाएँगे तब आपके साथ कुछ अद्भुत और अनोखा घटित होगा. यदि आपको इसमें कठिनाई हो रही है तब आप सिर्फ अपनी सांसों पर ही ध्यान दें और संकल्प कर लें कि पांच मिनट तक अपने दिमाग को शून्य कर लूंगा. अब आप केवल महसूस और देखने के लिए तैयार हैं और जैसे-जैसे सुनना और देखना गहराएगा आप ध्यान में उतरते जाएंगे.कितनी देर तक करें?इस ध्यान विधि को नियमित 30 दिन तक 05 मिनट तक करें. 30 दिन के बाद आप 10 मिनट और फिर अगले 30 दिन के लिए 20 मिनट कर दें. इसके बाद आप जितनी अवधि और जब तक करना चाहें कर सकते हैं.by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦आखिर में इसका लाभ-प्रदूषण और काम के अधिक दबाव से व्यक्ति तनाव और मानसिक थकान का अनुभव करता है. निरंतर ध्यान करने से मस्तिष्क को नयी ऊर्जा मिलती है और तनाव से बचा जा सकता है. साथ ही ध्यान लगाने वाले व्यक्ति को थकान का अहसास नहीं होता है. गहरी से गहरी नींद से भी कहीं अधिक लाभ ध्यान से मिलता है.

ध्यान साधना कैसे करे - Dhyan Sadhana Kaise Kare!

 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦

ध्यान साधना कैसे करे - Dhyan Sadhana Kaise Kare!

भारत द्वारा दुनिया को दिए गए कुछ नायाब तोहफों में से एक ध्यान साधना भी है. ध्यान साधना एक ऐसी अद्भुत विधि है जो हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारती है. मन की एकाग्रता से आने वाली शांति को पाने का रास्ता ही ध्यान है और यहीं ध्यान अष्टांग योग के अंतिम चरण में समाधि की अवस्था पा लेता है. ध्यान योग का एक ऐसा महत्वपूर्ण तत्व है जिसके माध्यम से तन, मन और आत्मा के बीच एक सुंदर औयर लयात्मक संबंध का निर्माण होता है. अंग्रेजी में इसे मेडिटेशन कहते हैं. ध्यान चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाने वाले बल्ब की तरह है. योगियों का ध्यान सूर्य के प्रकाश की तरह होता है. आइए इस लेख के माध्यम से हम ध्यान साधना करने के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालें ताकि इस विषय में लोगों को जागरुक किया जा सके.

कैसे करें शुरुआत?
मेडिटेशन के लिए सुबह का समय उत्तम है. मेडिटेशन करने से पहले ध्यान साधना जरूर करें, इससे सांस स्थिर होती है. इसके लिए चाहें तो आप योग का भस्त्रिका और कपालभाती कर सकते हैं. आप इसके अलावा शरीर को थकाने के लिए कुछ और भी कर सकते हैं. याद रखें कि मेडिटेशन को पूर्ण करने के भी आपकों ध्यान साधना जरूर करना है.

1. प्रार्थना से करें शुरुआत-
अब आप साफ वातावरण में कुश के आसन पर बैठें. इसके बाद हृदय के पास दोनों हाथ जोड़ कर अपने इष्टदेव को याद करें और मन ही मन में ध्यान साधना को पूर्ण करने के लिए उनसे आर्शीवाद लें, क्योंकि किसी भी कार्य के पूर्ण होने में आपके इष्टदेव का योगदान महत्वपूर्ण होता है.

2. शरीर की हलचलों को नजरअंदाज करें-
इसके बाद सिद्धासन में बैठकर बाएं हाथ को बाएं घुटने पर और दाएं हाथ को दाएं घुटने पर रखें. रीढ़ को सीधे रखते हुए गहरी सांस ले और छोड़ें. अपने शरीर की सभी हलचलों पर ध्यान देते हुए आपके आसपास जो भी घटित हो रहा है उस पर भी ध्यान दें.

3. पूरा ध्यान साँसों पर केन्द्रित करें-
मन को एकाग्र और चित्त को स्थिर करने का सर्वाधिक लोकप्रिय और आसान तरीका है साँसों पर ध्यान केन्द्रित करना. इसलिए अब आप अपनी सांसों को छोडने और लेने की प्रक्रिया पर ध्यान दें. सांसों की ओर ध्यान देने से चित्त शांत होने लगेगा और चित्त का शांत होना ध्यान की शुरुआत के लिए बेहद जरूरी है.

4. महसूस होने के लिए तैयार हों-
जब आप अपने पूरे ध्यान को अपने साँसों पर केन्द्रित करने में सफल हो जाएँगे तब आपके साथ कुछ अद्भुत और अनोखा घटित होगा. यदि आपको इसमें कठिनाई हो रही है तब आप सिर्फ अपनी सांसों पर ही ध्यान दें और संकल्प कर लें कि पांच मिनट तक अपने दिमाग को शून्य कर लूंगा. अब आप केवल महसूस और देखने के लिए तैयार हैं और जैसे-जैसे सुनना और देखना गहराएगा आप ध्यान में उतरते जाएंगे.

कितनी देर तक करें?
इस ध्यान विधि को नियमित 30 दिन तक 05 मिनट तक करें. 30 दिन के बाद आप 10 मिनट और फिर अगले 30 दिन के लिए 20 मिनट कर दें. इसके बाद आप जितनी अवधि और जब तक करना चाहें कर सकते हैं.

by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦
आखिर में इसका लाभ-
प्रदूषण और काम के अधिक दबाव से व्यक्ति तनाव और मानसिक थकान का अनुभव करता है. निरंतर ध्यान करने से मस्तिष्क को नयी ऊर्जा मिलती है और तनाव से बचा जा सकता है. साथ ही ध्यान लगाने वाले व्यक्ति को थकान का अहसास नहीं होता है. गहरी से गहरी नींद से भी कहीं अधिक लाभ ध्यान से मिलता है.

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खंड में प्रायः यथावत आया है । इस पर प्रायः लोग शंका करते हैं अथवा अधिकतर लोगों को पता नहीं होता है कि वह शिवशतनाम कौन सा है, जिसका नारद जी ने जप किया ,जिससे उन्हें परम कल्याणमयी शांति की प्राप्ति हुई ?यहां सभी लोगों के लाभ हेतु वह शिवशतनाम मूल रूप में दिया जा रहा है । इस शिवशतनाम का उपदेश साक्षात् नारायण ने पार्वतीजी को भी दिया था , जिससे उन्हें भगवान शंकर पतिरूपमें प्राप्त हुए थे और वह उनकी साक्षात् अर्धांगनी बन गयीं।।। शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।।जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर ।जयेश्वर जयेशान जय सर्वज्ञ कामद ॥ १॥नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे ।अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ ॥ २॥जय पापहरानङ्गनिःसङ्गाभङ्गनाशन ।जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन ॥ ३॥जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित ।त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक ॥ ४॥शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय ।शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय ॥ ५॥सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर ।जयोग्ररूप मीमेश भव भर्ग जय प्रभो ॥ ६॥जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक ।रुण्डमालिन् कपालिंस्थं भुजङ्गाजिनभूषण ॥ ७॥दिगम्बर दिशां नाथ व्योमकश चिताम्पते ।जयाधार निराधार भस्माधार धराधर ॥ ८॥देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत ।वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव ॥ ९॥भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण ।त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते ॥ १०॥शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज ।नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन ॥ ११॥कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत् ।जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो ॥ १२॥पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत् ।दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल ॥ १३॥अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते ।सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर ॥ १४॥एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवकृतं तु ये ।शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह शृण्वन्ति च पठन्ति च ॥ १५॥न तापास्त्रिविधास्तेषां न शोको न रुजादयः ।ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते ॥ १६॥श्रीः प्रज्ञाऽऽरोग्यमायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नतिम् ।विद्या धर्मे मतिः शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशयः ॥ १७॥इति श्रीस्कन्दपुराणे सह्याद्रिखण्डेशिवाष्टोत्तरनामशतकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥🌹 भोले बाबा के 108 नाम 🌹भगवान शिव शतनाम-नामावली स्तोत्रम्!ॐ शिवाय नमः ॥ॐ महेश्वराय नमः ॥ॐ शंभवे नमः ॥ॐ पिनाकिने नमः ॥ॐ शशिशेखराय नमः ॥ॐ वामदेवाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ॐ कपर्दिने नमः ॥ॐ नीललोहिताय नमः ॥ॐ शंकराय नमः ॥ १० ॥ॐ शूलपाणये नमः ॥ॐ खट्वांगिने नमः ॥ॐ विष्णुवल्लभाय नमः ॥ॐ शिपिविष्टाय नमः ॥ॐ अंबिकानाथाय नमः ॥ॐ श्रीकंठाय नमः ॥ॐ भक्तवत्सलाय नमः ॥ॐ भवाय नमः ॥ॐ शर्वाय नमः ॥ॐ त्रिलोकेशाय नमः ॥ २० ॥ॐ शितिकंठाय नमः ॥ॐ शिवाप्रियाय नमः ॥ॐ उग्राय नमः ॥ॐ कपालिने नमः ॥ॐ कौमारये नमः ॥ॐ अंधकासुर सूदनाय नमः ॥ॐ गंगाधराय नमः ॥ॐ ललाटाक्षाय नमः ॥ॐ कालकालाय नमः ॥ॐ कृपानिधये नमः ॥ ३० ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐ परशुहस्ताय नमः ॥ॐ मृगपाणये नमः ॥ॐ जटाधराय नमः ॥ॐ क्तेलासवासिने नमः ॥ॐ कवचिने नमः ॥ॐ कठोराय नमः ॥ॐ त्रिपुरांतकाय नमः ॥ॐ वृषांकाय नमः ॥ॐ वृषभारूढाय नमः ॥ ४० ॥ॐ भस्मोद्धूलित विग्रहाय नमः ॥ॐ सामप्रियाय नमः ॥ॐ स्वरमयाय नमः ॥ॐ त्रयीमूर्तये नमः ॥ॐ अनीश्वराय नमः ॥ॐ सर्वज्ञाय नमः ॥ॐ परमात्मने नमः ॥ॐ सोमसूर्याग्नि लोचनाय नमः ॥ॐ हविषे नमः ॥ॐ यज्ञमयाय नमः ॥ ५० ॥ॐ सोमाय नमः ॥ॐ पंचवक्त्राय नमः ॥ॐ सदाशिवाय नमः ॥ॐ विश्वेश्वराय नमः ॥ॐ वीरभद्राय नमः ॥ॐ गणनाथाय नमः ॥ॐ प्रजापतये नमः ॥ॐ हिरण्यरेतसे नमः ॥ॐ दुर्धर्षाय नमः ॥ॐ गिरीशाय नमः ॥ ६० ॥ॐ गिरिशाय नमः ॥ॐ अनघाय नमः ॥ॐ भुजंग भूषणाय नमः ॥ॐ भर्गाय नमः ॥ॐ गिरिधन्वने नमः ॥ॐ गिरिप्रियाय नमः ॥ॐ कृत्तिवाससे नमः ॥ॐ पुरारातये नमः ॥ॐ भगवते नमः ॥ॐ प्रमधाधिपाय नमः ॥ ७० ॥ॐ मृत्युंजयाय नमः ॥ॐ सूक्ष्मतनवे नमः ॥ॐ जगद्व्यापिने नमः ॥ॐ जगद्गुरवे नमः ॥ॐ व्योमकेशाय नमः ॥ॐ महासेन जनकाय नमः ॥ॐ चारुविक्रमाय नमः ॥ॐ रुद्राय नमः ॥ॐ भूतपतये नमः ॥ॐ स्थाणवे नमः ॥ ८० ॥ॐ अहिर्भुथ्न्याय नमः ॥ॐ दिगंबराय नमः ॥ॐ अष्टमूर्तये नमः ॥ॐ अनेकात्मने नमः ॥ॐ स्वात्त्विकाय नमः ॥ॐ शुद्धविग्रहाय नमः ॥ॐ शाश्वताय नमः ॥ॐ खंडपरशवे नमः ॥ॐ अजाय नमः ॥ॐ पाशविमोचकाय नमः ॥ ९० ॥ॐ मृडाय नमः ॥ॐ पशुपतये नमः ॥ॐ देवाय नमः ॥ॐ महादेवाय नमः ॥ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ हरये नमः ॥ॐ पूषदंतभिदे नमः ॥ॐ अव्यग्राय नमः ॥ॐ दक्षाध्वरहराय नमः ॥ॐ हराय नमः ॥ १०० ॥ॐ भगनेत्रभिदे नमः ॥ॐ अव्यक्ताय नमः ॥ॐ सहस्राक्षाय नमः ॥ॐ सहस्रपादे नमः ॥ॐ अपपर्गप्रदाय नमः ॥ॐ अनंताय नमः ॥ॐ तारकाय नमः ॥ॐ परमेश्वराय नमः ॥ १०८ ॥🙏🏼 हर हर महादेव जी 🙏🏼

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