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In which house of the horoscope Saturn gives inauspicious effects?By philanthropist Vanitha Kasniya PunjabSaturn is such a planet towards which everyone's fear always remains. In which house Saturn is in the horoscope of any person,

शनि ऐसा ग्रह है जिसके प्रति सभी का डर सदैव बना रहता है. किसी भी मनुष्‍य की कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे मनुष्‍य के जीवन की दिशा, सुख, दुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती है. शनि को कष्टप्रदाता के रूप में अधिक जाना जाता है. शनि कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भावों का कारक है. शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है. लेकिन इसे पिता का शत्रु भी कहा जाता है. पहला घर सूर्य और मंगल ग्रह से प्रभावित होता है। पहले घर में शनि तभी अच्छे परिणाम देगा जब तीसरे, सातवें या दसवें घर में शनि के शत्रु ग्रह न हों. यदि, बुध या शुक्र, राहू या केतू, सातवें भाव में हों तो शनि हमेशा अच्छे परिणाम देगा. शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है. लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है. इसलिये वह शत्रु नही मित्र है. मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है.

सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ न्याय करता है. जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को प्रताडित करता है. शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है. इसका वाहन गिद्ध है. शनिवार इसका दिन है. स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है. शनि राजदूत, सेवक, पैर के दर्द तथा कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र, मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है. ऊसर भूमि इसका वासस्थान है. इसका रंग काला है. यह जातक के स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है. यह मकर और कुंभ राशियों का स्वामी तथा मृत्यु का देवता है. यह ब्रह्म ज्ञान का भी कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं.

कुंडली के प्रथम लग्न में शनि

जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि प्रथम भाव में हो वह व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है. यदि शनि अशुभ फल देने वाला है तो व्यक्ति रोगी, गरीब और बुरे कार्य करने वाला होता है. जिन जातकों के जन्म काल में शनि वक्री होती है वे भाग्यवादी होते हैं. उनके क्रिया-कलाप किसी अदृश्य शक्ति से प्रभावित होते हैं. वह जातक अपने पिता के प्रति उतना आज्ञाकारी नहीं होता है. प्रथम भाव में शनि वाले जातक एकांतवासी होकर प्रायः साधना में लगे रहते हैं. धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि में शनि वक्री होकर लग्न में स्थित हो तो जातक राजा या गांव का मुखिया होता है.

. उपाय :

1. शराब और मांसाहारी भोजन के सेवन से स्वयं को बचाएं.

2. · शनिवार के दिन न तो तेल लगाए और न ही तेल खाए.

3. बरगद के पेड़ की जड़ों पर मीठा दूध चढानें से शिक्षा और स्वास्थ्य में सकारात्मक परिणाम मिलेंगे.

4. भगवान शनिदेव या हनुमान जी के मंदिर में जाकर यह प्रार्थना करें.

5. शनि दोष निवारण मंत्र का जाप प्रतिदिन करें.

कुंडली के दूसरे लग्न में शनि

जिस जातक की कुंडली में दूसरे घर में शनि हो वह लकड़ी संबंधी व्यापार ,कोयला एवंलोहे के व्यापार में धन अर्जित करता हैं. जातक बुद्धिमान, दयालु और न्यायकर्ता होता है. जातक धन का आनंद लेता है और धार्मिक स्वभाव का होता है. जातक की वित्तीय स्थिति सातवें भाव में स्थित ग्रह पर निर्भर करेगी. परिवार में पुरुष सदस्यों की संख्या छठवें भाव और आयु आठवें भाव पर निर्भर करेगी. दूसरे भाव में शनि जातक को परिवार से दूर करता हैं. ऐसा जातक सुख, साधन व समृद्धि की खोज में दूर देश विदेश की यात्रा करता हैं. उसका भाग्योदय पैतृक निवास से दूर होता है. जातक झूठ बोलने वाला, चंचल, बातूनी तथा दूसरों को मूर्ख बनाने में कुशल होता है.

उपाय :

1. लगातार 43 दिनों तक नंगे पांव हनुमान मंदिर जाएं.

2. अपने माथे पर दही या दूध का तिलक लगाएं और मांसाहार तथा शराब के सेवन से बचें.

3. सांप को दूध पिलाएं और कभी भी सांप को तंग ना करें और ना ही मारें.

4. दो रंग वाली गाए या भैंस कभी भी ना पालें. रोज शनिवार को कड़वे (तिल सर सरसो) तेल का दान करें.

5. शनिवार के दिन किसी तालाब, नदी में मछलियों को आटा का चारा खिलाएं.

कुंडली के तीसरे लग्न में शनि

अगर कुंडली में तीसरे भाव में शनि हो तो जातक बुद्धिमान और उदार होता है. इसके बावजूद जातक आलस्य से भरा आलसी शरीर वाला होता है. ऐसे जातक के चित में हमेशा अशांति रहती है. आपने लोगों से संघर्षपूर्ण स्थितियो और कठोर परिश्रम के बाद भी मिलने वाली असफलता जातक को परेशान करती हैं. ऐसे जातकों को भाइयो से तनावपूर्ण संबंध रहते हैं. ऐसे जातक को माता पिता से मात्र आशीर्वाद के अलावा और कुछ प्राप्त नहीं होता. तीसरा घर मंगल का होता है इस घर में शनि का प्रभाव आमतौर पर अच्छा होता है. यदि जातक शराब और मांसाहार से दूर रहता है तो वह लम्बे और स्वस्थ जीवन का आनंद उठाएगा.

उपाय :

1. बुरे प्रभावों से बचने के लिए तीन कुत्तों की सेवा करें.

2. घर का मुख्य दरवाजा यदि दक्षिण दिशा की ओर हो तो उसे बंद करवा दें.

3. प्रतिदिन शनि चालीसा पढ़ें, दूसरों को भी शनि चालीसा भेंट करें.

4. शराब और मांसाहार का सेवन कदापि ना करें साथ ही गले में शनि यंत्र धारण करें.

5. मकान के आखिर में एक अंधेरा कमरा बनवाएं और घर में एक काला कुत्ता पालें.

कुंडली के चौथे लग्न में शनि

यदि जन्म कुंडली में शनि चौथे भाव या लग्न में हो तो जातक गृहहीन होता है. ऐसे जातक की या तो माता नहीं होती या माता को कष्‍ट होता है. ऐसा व्यक्ति बचपन में रोगी भी रहता है. यह भाव सुख का भाव माना जाता हैं. ऐसा व्यक्ति घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं निभाता और अंत में संन्यासी बन जाता है. लेकिन, चतुर्थ में शनि तुला, मकर या कुंभ राशि का हो तो जातक को पूर्वजों की संपत्ति प्राप्त होती है. चौथे भाव में शनि जातक को पित्त तथा वायु विकार से ग्रस्त रखता है. अभिभावक से जातक के विचार और सोच एक दूसरे से विरुद्ध होते है. जातक को व्यापार के प्रारम्भ में अनेक घोर संकट प्रकट होते है.

उपाय :

1. सांप को दूध पिलाएं अथवा किसी गाय या भैंस को दूध-चावल खिलाएं. किसी कुएं में दूध डालें और रात में दूध न पियें.

2. पराई स्त्री से अवैध संबंध कदापि न बनाएं. कौवों को दाना खिलाएं.

3. कच्चा दूध शनिवार दिन कुएं में डालें.

4. एक बोतल शराब शनिवार के दिन बहती नदी में प्रवाहित करें.

5. शनिवार के दिन अपने भार के दसवें हिस्से के बराबर वजन का बादाम नदी में प्रवाहित करें.

बाल वनिता महिला आश्रम,

कुंडली के पांचवें लग्न में शनि

पंचम भाव का वक्री शनि बेहतर प्रेम संबंध देता है. इसके बावजूद जातक प्रेमी को धोखा देता है. वह पत्नी एवं बच्चे की भी परवाह नहीं करता है. जातक भ्रमण करता है अथवा उसकी बुद्धि भ्रमित रहती है. अगर पंचम भाव में शनि हो तो वह आदमी ईश्वर में विश्वास नहीं करता है और मित्रों से द्रोह करता है. ऐसा जातक पेट पीड़ा से परेशान, घूमनेवाला, आलसी और चतुर होता है. जिस जातक के पंचम भाव में शनि होता है उसका दिमाग फिजूल विचारों से ग्रस्त रहता है. यदि शनि उच्च का होकर पंचम हो तो जातक के पैरों में कमजोरी ला देता है. मेष, सिंह, धनु राशि का शनि जातक में अहम का उदय करता है. जातक अपने विचारों को गोपनीय रखता है.

उपाय :

1. चमड़े के जूते, बैग, अटैची आदि का प्रयोग न करें और शनिवार का व्रत करें.

2. चार नारियल बहते जल में प्रवाहित करें, परंतु नदी का जल स्वच्छ होना चाहिए.

3. हर शनिवार के दिन काली गाय को घी लपेटी हुई रोटी नियमित रूप से खिलाएं.

4. शनि यंत्र धारण करें.

5. बादाम का एक हिस्सा मंदिर में बाटें और दूसरा हिस्सा लाकर घर में रख दें.

कुंडली के छठे लग्न में शनि

कुंडली के छठे भाव में अगर शनि हो तो इससे संबंधित काम रात में करने से हमेश लाभ होगा. यदि शादी के 28 साल के बाद होगी तो अच्छे परिणाम मिलेंगे. यदि केतु अच्छी स्थित में हो जातक धन, लाभदायक यात्राओं और बच्चों के सुख का आनंद पाता है. जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि छठे भाव में हो तो वह कामी, सुंदर, शूरवीर, अधिक खाने वाला, कुटिल स्वभाव, बहुत शत्रुओं को जीतने वाला होता है. षष्ठ भाव का वक्री शनि यदि निर्बल हो तो रोग, शत्रु एवं ऋण कारक होता है.

उपाय:

1. एक काला कुत्ता पालें और उसे प्रतिदिन भोजन करायें.

2. किसी भी स्वच्छ नदी या बहते पानी में नारियल और बादाम बहाएं.

3. सांप की सेवा बच्चों के कल्याण के लिए फायदेमंद साबित होगी.

4. चमड़े के जूते, बैग, अटैची आदि का प्रयोग न करें और शनिवार का व्रत करें.

कुंडली के सातवें लग्न में शनि

लग्न का सातवां घर बुध और शुक्र से प्रभावित होता है. दोनों ही शनि के मित्र ग्रह हैं, इसलिए शनि इस घर में बहुत अच्छा परिणाम देता है. शनि से जुड़े व्यवसाय जैसे मशीनरी और लोहे का काम जातक के लिए बहुत लाभदायक होता है. यदि जातक अपनी पत्नी से अच्छे संबंध रखता है तो वह अमीर और समृद्ध होगा और लंबी आयु के साथ अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेगा. यदि बृहस्पति पहले घर में हो तो जातक को सरकार से लाभ होगा. यदि जातक व्यभिचारी हो जाता है या शराब पीने लगता है तो शनि नीच और हानिकारक हो जाता है.

उपाय :

1. किसी बांसुरी में चीनी भरें और उसे ले जाकर किसी सुनसान जगह जैसे कि जंगल आदि में दफना दें.

2. काली गाय की सेवा करें. पराई स्त्री से अवैध संबंध कदापि न बनाएं.

3. मिट्टी के पात्र में शहद भरकर खेत में मिट्टी के नीचे दबा दें.

4. अपने हाथ में काले घोड़े की नाल का नाव की कांटी की अंगूठी धारण करें.

कुंडली के आठवें लग्न में शनि

कुंडली के आठवें लग्न में कोई भी ग्रह शुभ नहीं माना जाता है. जिसके आठवें लग्न में शनि हो वह जातक दीर्घायु होगा लेकिन उसके पिता की उम्र कम होती है और जातक के भाई एक-एक करके शत्रु बनते जाते हैं. यह घर शनि का मुख्यालय माना जाता है, लेकिन यदि बुध, राहू और केतु जातक की कुंडली में नीच के हैं तो शनि बुरा परिणाम देगा.

उपाय :

1. अपने साथ हमेशा चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें.

2. नहाते समय पानी में दूध डालें और किसी पत्थर या लकड़ी के आसन पर बैठ कर स्नान करें.

3. गले में चांदी की चेन धारण करें और शराब व मांस का सेवन ना करें.

4. शनिवार के दिन आठ किलो उड़द बहती नदी में प्रवाहित करें.

5. उड़द काले कपड़े में बांध कर ले जाण्एं और गांठ खोलकर दाल नदी के जल में प्रवाहित कर दें.

कुंडली के नौवें लग्न में शनि

जिसके कुंडली के नौवें लग्न में शनि हो वैसे जातक के तीन घर होंगे. जातक एक सफल यात्रा संचालक (टूर ऑपरेटर) या सिविल इंजीनियर होगा. वह एक लंबे और सुखी जीवन का आनंद लेगा साथ ही जातक के माता - पिता भी सुखी जीवन का आनंद लेंगे. यहां स्थित शनि जातक की तीन पीढ़ियों शनि के दुष्प्रभाव से बचाएगा. अगर जातक दूसरों की मदद करता है तो शनि ग्रह हमेशा अच्छे परिणाम देगा.

उपाय :

1. बहते पानी में चावल या बादाम बहाएं. बृहस्पति से संबंधित (सोना, केसर) और चंद्रमा से संबंधित (चांदी, कपड़ा) का काम अच्छे परिणाम देंगे.

2. पीले रंग का रुमाल सदैव अपने पास रखें और साबुत मूंग मिट्टी के बर्तन में भरकर नदी में प्रवाहित करें.

3. सवा 6 रत्ती का पुखराज गुरुवार के दिन धारण करें.

4. शनिवार के दिन कच्चा दूध कुएं में डालें.

5. हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी खिलाएं.

कुंडली के दसवें लग्न में शनि

कुंडली के दसवें भाव में शनि लाभदायक होता है. यह शनि का अपना घर है, जहां शनि अच्छा परिणाम देगा. जातक तब तक धन और संपत्ति का आनंद लेता रहेगा, जब तक कि वह घर नहीं बनवाता. जातक महत्वाकांक्षी होगा और सरकार से लाभ का आनंद लेगा. जातक को चतुराई से काम लेना चाहिए और एक जगह बैठ कर काम करना चाहिए. तभी उसे शनि से लाभ और आनंद मिल पाएगा. दशम भाव का शनि होने पर व्यक्ति धनी, धार्मिक, राज्यमंत्री या उच्चपद पर आसीन होता है. दशमस्थ शनि वक्री हो तो जातक वकील, न्यायाधीश,बैरिस्टर, मुखिया, मंत्री या दंडाधिकारी होता है.

उपाय :

1. प्रतिदिन मंदिर जाएं और शराब, मांस और अंडे से परहेज करें.

2. दस अंधे लोगों को भोजन कराएं, पीले रंग का रुमाल सदैव अपने पास रखें.

3. जातक अपने कमरे के पर्दे, बिस्तर का कवर, दीवारों का रंग आदि पीले रंग से रंगवाएं.

4. गुरुवार को पीले लड्डू बाटें. आपने नाम से मकान न बनवाएं.

5. अपने ललाट पर प्रतिदिन दूध अथवा दही का तिलक लगाएं और शनि यंत्र धारण करें.

कुंडली के ग्यारहवें लग्न में शनि

जिकी कुंडली के ग्यारहवें लग्न में शनि हो उस जातक के भाग्य का निर्धारण उसकी उम्र के अडतालीसवें वर्ष में होगा. जातक कभी भी निःसंतान नहीं रहेगा. जातक चतुराई और छल से पैसे कमाएगा. शनि ग्रह राहु और केतु की स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा परिणाम देगा. जिस व्यक्ति की कुंडली में ग्याहरवें भाव में शनि हो वह लंबी आयु वाला, धनी, कल्पनाशील, निरोग, सभी सुख प्राप्त करने वाला होता है. एकादश भाव का शनि जातक को चापलूस बनाता है. व्यय भावस्थ वक्री शनि निर्दयी एवं आलसी बनाता है.

उपाय :

1. किसी महत्वपूर्ण काम को शुरू करने से पहले 43 दिनों तक तेल या शराब की बूंदें जमीन पर गिराएं.

2. शराब और मांसाहार का सेवन ना करें और अपना नैतिक चरित्र ठीक रखें.

3. मित्र के वेश मे छुपे शत्रुओं से सावधान रहें. सूर्योदय से पूर्व शराब और कड़वा तेल मुख्य दरवाजे के पास भूमिपर गिराएं.

4. पर स्त्री गमन न करें और शनि यंत्र धारण करें.

5. कच्चा दूध शनिवार के दिन कुएं में डालें और कौवों को दाना खिलाएं.

कुंडली के बारहवें लग्न में शनि

कुंडली के बारहवें लग्न में शनि अच्छा परिणाम देता है. जातक के दुश्मन नहीं होंगे. उसके कई घर होंगे. उसके परिवार और व्यापार में वृद्धि होगी. वह बहुत अमीर हो जाएगा. हालांकि, यदि जातक शराब पिए, मांसाहार करे या अपने घर के अंधेरे कमरे में रोशनी करे तो शनि नीच का हो जाएगा. बाहरवें भाव में शनि होने पर व्यक्ति अशांत मन वाला, पतित, बकवादी, कुटिल दृष्टि, निर्दय, निर्लज, खर्च करने वाला होता है.

उपाय :

1. जातक को झूठ नहीं बोलना चाहिए साथ ही शराब और मांस से दूर रहना चाहिए.

2. चार सूखे नारियल बहते जल में प्रवाहित करें और शनि यंत्र धारण करें.

3. शनिवार के दिन काले कुत्ते ओर गाय को रोटी खिलाएं और कड़वे तेल व उड़द दाल दान करें.

5. सर्प को दूध पिलाएं और किसी काले कपड़े में बारह बादाम बांधकर उसे किसी लोहे के बर्तन में भरकर किसी अंधेरे कमरे में रखने से अच्छे परिणाम मिलेंगे.

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ਯੋਗ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब// 🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹 ਇਹ ਲੇਖ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਸਰੀਰਕ, ਮਾਨਸਿਕ ਅਤੇ ਅਧਿਆਤਮਕ ਅਭਿਆਸਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਬਾਰੇ ਹੈ. ਹੋਰ ਉਪਯੋਗਾਂ ਲਈ,  ਯੋਗਾ  ਵੇਖੋ  . ਕਸਰਤ ਵਿੱਚ ਯੋਗਾ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਲਈ,  ਯੋਗ ਨੂੰ ਕਸਰਤ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ  ਰੇਪੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਯੋਗਾ ਦੇ ਵਰਤਣ ਲਈ, ਵੇਖੋ,  ਥੈਰੇਪੀ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਯੋਗਾ  . "ਯੋਗ" ਇੱਥੇ ਰੀਡਾਇਰੈਕਟ ਕਰਦਾ ਹੈ. ਹੋਰ ਵਰਤੋਂ ਲਈ,  ਯੋਗ (ਡਿਸਅਬਿਗਿuationਗੇਸ਼ਨ) ਵੇਖੋ  . ਇਸ ਲੇਖ ਵਿਚ  ਇੰਡਿਕ ਟੈਕਸਟ ਹੈ  .  ਸਹੀ  ਪੇਸ਼ਕਾਰੀ ਸਹਾਇਤਾ ਤੋਂ  ਬਿਨਾਂ , ਤੁਸੀਂ ਇੰਡਿਕ ਟੈਕਸਟ ਦੀ ਬਜਾਏ  ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਚਿੰਨ੍ਹ ਜਾਂ ਬਕਸੇ  , ਗਲਤ ਥਾਂ ਤੇ ਸਵਰ ਜਾਂ ਗੁੰਮ ਸੰਜੋਗ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹੋ . ਯੋਗਾ  (  /  ਜੰਮੂ   oʊ  ɡ  ə  /  ;  [1]   ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ  :  योग  ;  ਉਚਾਰਨ  ) ਦੇ ਇੱਕ ਗਰੁੱਪ ਨੂੰ ਹੈ  , ਸਰੀਰਕ  ,  ਮਾਨਸਿਕ  , ਅਤੇ  ਰੂਹਾਨੀ  ਅਮਲ ਜ ਤਾੜਨਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਉਪਜੀ ਹੈ  ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤ  . ਯੋਗ  ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ  ਦੇ ਛੇ ...

🌺जिस समय नारद जी का मोह भंग हो गया था और नारद जी ने विष्णु जी को श्राप देने के बाद अपने पाप का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा तो विष्णु जी ने नारद जी को काशी में जाकर कौन से शिव स्तोत्र का जप करने को कहा था ?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब(1)शिव तांडव स्तोत्र(2)शिव शतनाम स्तोत्र(3)शिव सहस्त्रनाम स्तोत्र(4)शिव पंचाक्षर स्तोत्र(5)नील रुद्र शुक्त🌹 इसका सही उत्तर है शिव शतनाम स्तोत्र 🌹यह सब देखकर नारद जी की बुद्धि भी शांत और शुद्ध हो गई ।उन्हें सारी बीती बातें ध्यान में आ गयीं । तब मुनि अत्यंत भयभीत होकर भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे कि- भगवन ! मेरा शाप मिथ्या हो जाये और मेरे पापों कि अब सीमा नहीं रही , क्योंकि मैंने आपको अनेक दुर्वचन कहे ।इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि -जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत विश्रामाँ ।।कोउ नहीं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें ।।जेहि पर कृपा न करहि पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी ।।विष्णु जी ने कहा नारद जी आप जाकर शिवजी के शिवशतनाम का जप कीजिये , इससे आपके हृदय में तुरंत शांति होगी । इससे आपके दोष-पाप मिट जायँगे और पूर्ण ज्ञान-वैराग्य तथा भक्ति-की राशि सदा के लिए आपके हृदय में स्थित हो जायगी । शिवजी मेरे सर्वाधिक प्रिय हैं , यह विश्वास भूलकर भी न छोड़ना । वे जिस पर कृपा नहीं करते उसे मेरी भक्ति प्राप्त नहीं होती।यह प्रसंग मानस तथा शिवपुराण के रूद्रसंहिता के सृष्टि - खंड में प्रायः यथावत आया है । इस पर प्रायः लोग शंका करते हैं अथवा अधिकतर लोगों को पता नहीं होता है कि वह शिवशतनाम कौन सा है, जिसका नारद जी ने जप किया ,जिससे उन्हें परम कल्याणमयी शांति की प्राप्ति हुई ?यहां सभी लोगों के लाभ हेतु वह शिवशतनाम मूल रूप में दिया जा रहा है । इस शिवशतनाम का उपदेश साक्षात् नारायण ने पार्वतीजी को भी दिया था , जिससे उन्हें भगवान शंकर पतिरूपमें प्राप्त हुए थे और वह उनकी साक्षात् अर्धांगनी बन गयीं।।। शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ।।जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर ।जयेश्वर जयेशान जय सर्वज्ञ कामद ॥ १॥नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे ।अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ ॥ २॥जय पापहरानङ्गनिःसङ्गाभङ्गनाशन ।जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन ॥ ३॥जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित ।त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक ॥ ४॥शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय ।शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय ॥ ५॥सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर ।जयोग्ररूप मीमेश भव भर्ग जय प्रभो ॥ ६॥जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक ।रुण्डमालिन् कपालिंस्थं भुजङ्गाजिनभूषण ॥ ७॥दिगम्बर दिशां नाथ व्योमकश चिताम्पते ।जयाधार निराधार भस्माधार धराधर ॥ ८॥देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत ।वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव ॥ ९॥भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण ।त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते ॥ १०॥शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज ।नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन ॥ ११॥कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत् ।जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो ॥ १२॥पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत् ।दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल ॥ १३॥अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते ।सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर ॥ १४॥एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवकृतं तु ये ।शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह शृण्वन्ति च पठन्ति च ॥ १५॥न तापास्त्रिविधास्तेषां न शोको न रुजादयः ।ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते ॥ १६॥श्रीः प्रज्ञाऽऽरोग्यमायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नतिम् ।विद्या धर्मे मतिः शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशयः ॥ १७॥इति श्रीस्कन्दपुराणे सह्याद्रिखण्डेशिवाष्टोत्तरनामशतकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥🌹 भोले बाबा के 108 नाम 🌹भगवान शिव शतनाम-नामावली स्तोत्रम्!ॐ शिवाय नमः ॥ॐ महेश्वराय नमः ॥ॐ शंभवे नमः ॥ॐ पिनाकिने नमः ॥ॐ शशिशेखराय नमः ॥ॐ वामदेवाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ॐ कपर्दिने नमः ॥ॐ नीललोहिताय नमः ॥ॐ शंकराय नमः ॥ १० ॥ॐ शूलपाणये नमः ॥ॐ खट्वांगिने नमः ॥ॐ विष्णुवल्लभाय नमः ॥ॐ शिपिविष्टाय नमः ॥ॐ अंबिकानाथाय नमः ॥ॐ श्रीकंठाय नमः ॥ॐ भक्तवत्सलाय नमः ॥ॐ भवाय नमः ॥ॐ शर्वाय नमः ॥ॐ त्रिलोकेशाय नमः ॥ २० ॥ॐ शितिकंठाय नमः ॥ॐ शिवाप्रियाय नमः ॥ॐ उग्राय नमः ॥ॐ कपालिने नमः ॥ॐ कौमारये नमः ॥ॐ अंधकासुर सूदनाय नमः ॥ॐ गंगाधराय नमः ॥ॐ ललाटाक्षाय नमः ॥ॐ कालकालाय नमः ॥ॐ कृपानिधये नमः ॥ ३० ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐ परशुहस्ताय नमः ॥ॐ मृगपाणये नमः ॥ॐ जटाधराय नमः ॥ॐ क्तेलासवासिने नमः ॥ॐ कवचिने नमः ॥ॐ कठोराय नमः ॥ॐ त्रिपुरांतकाय नमः ॥ॐ वृषांकाय नमः ॥ॐ वृषभारूढाय नमः ॥ ४० ॥ॐ भस्मोद्धूलित विग्रहाय नमः ॥ॐ सामप्रियाय नमः ॥ॐ स्वरमयाय नमः ॥ॐ त्रयीमूर्तये नमः ॥ॐ अनीश्वराय नमः ॥ॐ सर्वज्ञाय नमः ॥ॐ परमात्मने नमः ॥ॐ सोमसूर्याग्नि लोचनाय नमः ॥ॐ हविषे नमः ॥ॐ यज्ञमयाय नमः ॥ ५० ॥ॐ सोमाय नमः ॥ॐ पंचवक्त्राय नमः ॥ॐ सदाशिवाय नमः ॥ॐ विश्वेश्वराय नमः ॥ॐ वीरभद्राय नमः ॥ॐ गणनाथाय नमः ॥ॐ प्रजापतये नमः ॥ॐ हिरण्यरेतसे नमः ॥ॐ दुर्धर्षाय नमः ॥ॐ गिरीशाय नमः ॥ ६० ॥ॐ गिरिशाय नमः ॥ॐ अनघाय नमः ॥ॐ भुजंग भूषणाय नमः ॥ॐ भर्गाय नमः ॥ॐ गिरिधन्वने नमः ॥ॐ गिरिप्रियाय नमः ॥ॐ कृत्तिवाससे नमः ॥ॐ पुरारातये नमः ॥ॐ भगवते नमः ॥ॐ प्रमधाधिपाय नमः ॥ ७० ॥ॐ मृत्युंजयाय नमः ॥ॐ सूक्ष्मतनवे नमः ॥ॐ जगद्व्यापिने नमः ॥ॐ जगद्गुरवे नमः ॥ॐ व्योमकेशाय नमः ॥ॐ महासेन जनकाय नमः ॥ॐ चारुविक्रमाय नमः ॥ॐ रुद्राय नमः ॥ॐ भूतपतये नमः ॥ॐ स्थाणवे नमः ॥ ८० ॥ॐ अहिर्भुथ्न्याय नमः ॥ॐ दिगंबराय नमः ॥ॐ अष्टमूर्तये नमः ॥ॐ अनेकात्मने नमः ॥ॐ स्वात्त्विकाय नमः ॥ॐ शुद्धविग्रहाय नमः ॥ॐ शाश्वताय नमः ॥ॐ खंडपरशवे नमः ॥ॐ अजाय नमः ॥ॐ पाशविमोचकाय नमः ॥ ९० ॥ॐ मृडाय नमः ॥ॐ पशुपतये नमः ॥ॐ देवाय नमः ॥ॐ महादेवाय नमः ॥ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ हरये नमः ॥ॐ पूषदंतभिदे नमः ॥ॐ अव्यग्राय नमः ॥ॐ दक्षाध्वरहराय नमः ॥ॐ हराय नमः ॥ १०० ॥ॐ भगनेत्रभिदे नमः ॥ॐ अव्यक्ताय नमः ॥ॐ सहस्राक्षाय नमः ॥ॐ सहस्रपादे नमः ॥ॐ अपपर्गप्रदाय नमः ॥ॐ अनंताय नमः ॥ॐ तारकाय नमः ॥ॐ परमेश्वराय नमः ॥ १०८ ॥🙏🏼 हर हर महादेव जी 🙏🏼

🌺 जिस समय नारद जी का मोह भंग हो गया था और नारद जी ने विष्णु जी को श्राप देने के बाद अपने पाप का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा तो विष्णु जी ने नारद जी को काशी में जाकर कौन से शिव स्तोत्र का जप करने को कहा था ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब (1)शिव तांडव स्तोत्र (2)शिव शतनाम स्तोत्र (3)शिव सहस्त्रनाम स्तोत्र (4)शिव पंचाक्षर स्तोत्र (5)नील रुद्र शुक्त 🌹 इसका सही उत्तर है शिव शतनाम स्तोत्र 🌹 यह सब देखकर नारद जी की बुद्धि भी शांत और शुद्ध हो गई । उन्हें सारी बीती बातें ध्यान में आ गयीं । तब मुनि अत्यंत भयभीत होकर भगवान विष्णु के चरणों में गिर पड़े और प्रार्थना करने लगे कि- भगवन ! मेरा शाप मिथ्या हो जाये और मेरे पापों कि अब सीमा नहीं रही , क्योंकि मैंने आपको अनेक दुर्वचन कहे । इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि - जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत विश्रामाँ ।। कोउ नहीं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें ।। जेहि पर कृपा न करहि पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी ।। विष्णु जी ने कहा नारद जी आप जाकर शिवजी के शिवशतनाम का जप कीजिये , इससे आपके हृदय में तुरंत शांति होगी । इ...
 🌺 जानिए किस देवता के तेज से देवी दुर्गा के कौन से अंग बने 🌺 भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ।  यमराज के तेज से मस्तक के केश।  भगवान विष्णु के तेज से भुजाएं।  चंद्रमा के तेज से स्तन।  इंद्र के तेज से कमर।  वरुण के तेज से जंघा।  पृथ्वी के तेज से नितंब।  ब्रह्मा के तेज से चरण।  सूर्य के तेज से दोनों पौरों की अंगुलियां,  प्रजापति के तेज से सारे दांत।  अग्नि के तेज से दोनों नेत्र।  संध्या के तेज से भौंहें।  वायु के तेज से कान।  अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।  कहा जाता है कि फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह को प्रदान किया।  इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज...