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*You must read this**very beautiful*By social worker Vanita Kasani PunjabA cow went into a forest to graze the grass. The evening was close to dawn. He saw a tiger moving towards him.Here and there for fear

*अवश्य पढ़ें*   *बहुत सुंदर* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है।  वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई।  वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था।  उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों ही करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फंस गए।  दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।  थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है?  बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं...

गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को भयंकर अभिशाप क्यों दिया?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबयुद्ध के पश्चात् जब गांधारी ने मृतकों के शव देखे, तब वह शोक के मारे अत्यंत व्याकुल हो उठीं। रणभूमि में अपने पुत्रों को मरा हुआ देखकर वह क्रोध से भर गईं। चूंकि गांधारी इस बात को समझती थी कि श्री कृष्ण चाहते तो युद्ध को रोक सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने पुत्रों के मृत्यु का दोष श्री कृष्ण पर मढ़ दिया और उन्हें भयंकर शाप दे दिया। गांधारी बोलीं -उद्धरण -श्रीकृष्ण! जनार्दन! पाण्डव और धृतराष्ट्रके पुत्र आपसमें लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? ⁠।⁠।⁠ ३९ ⁠।⁠।महाबाहु मधुसूदन! तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत-से सेवक और सैनिक थे। तुम महान् बलमें प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षोंसे अपनी बात मनवा लेनेकी सामर्थ्य तुममें मौजूद थी। तुमने वेद-शास्त्रों और महात्माओंकी बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छासे कुरुकुलके नाशकी उपेक्षा की—जानबूझकर इस वंशका विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो ⁠।⁠।⁠ ४०-४१ ⁠।⁠।इसके बाद उन्होंने श्री कृष्ण को शाप दिया। वे बोलीं -उद्धरण -चक्र और गदा धारण करनेवाले केशव! मैंने पतिकी सेवासे जो कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबलसे तुम्हें शाप दे रही हूँ ⁠।⁠।⁠ ४२ ⁠।⁠।गोविन्द! तुमने आपसमें मारकाट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों और पाण्डवोंकी उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओंका भी विनाश कर डालोगे ⁠।⁠।⁠ ४३ ⁠।⁠।मधुसूदन! आजसे छत्तीसवाँ वर्ष उपस्थित होनेपर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपसमें लड़कर मर जायँगे। तुम सबसे अपरिचित और लोगोंकी आँखोंसे ओझल होकर अनाथके समान वनमें विचरोगे और किसी निन्दित उपायसे मृत्युको प्राप्त होओगे ⁠।⁠।⁠ ४४-४५ ⁠।⁠।इन भरतवंशकी स्त्रियोंके समान तुम्हारे कुलकी स्त्रियाँ भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओंके मारे जानेपर इसी तरह सगे-सम्बन्धियोंकी लाशोंपर गिरेंगी ⁠।⁠।⁠ ४६ ⁠।⁠।यह उद्धरण व्यास रचित महाभारत के गीता प्रेस (हिंदी अनुवादित संस्करण) से लिए गए हैं।

गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को भयंकर अभिशाप क्यों दिया? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब युद्ध के पश्चात् जब गांधारी ने मृतकों के शव देखे, तब वह शोक के मारे अत्यंत व्याकुल हो उठीं। रणभूमि में अपने पुत्रों को मरा हुआ देखकर वह क्रोध से भर गईं। चूंकि गांधारी इस बात को समझती थी कि श्री कृष्ण चाहते तो युद्ध को रोक सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने पुत्रों के मृत्यु का दोष श्री कृष्ण पर मढ़ दिया और उन्हें भयंकर शाप दे दिया। गांधारी बोलीं - उद्धरण - श्रीकृष्ण! जनार्दन! पाण्डव और धृतराष्ट्रके पुत्र आपसमें लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? ⁠।⁠।⁠ ३९ ⁠।⁠। महाबाहु मधुसूदन! तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत-से सेवक और सैनिक थे। तुम महान् बलमें प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षोंसे अपनी बात मनवा लेनेकी सामर्थ्य तुममें मौजूद थी। तुमने वेद-शास्त्रों और महात्माओंकी बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छासे कुरुकुलके नाशकी उपेक्षा की—जानबूझकर इस वंशका विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो ⁠।⁠।⁠ ४०-४१ ⁠।⁠। इसके बाद उन्होंने श्...

Luckily, it is necessary to keep these things in the temple of the house, it will be doubled by day and by quadruple by night.

सौभाग्य है लाना तो घर के मंदिर में इन चीज़ों को रखना है जरूरी, होगी दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब  अगर आपके घर में भी किसी वजह से सुख समृद्धि की थोड़ी कमी है तो कुछ मामूली उपायों से ही आप अपनी बिगड़ी संवार सकते हैं और पा सकते हैं खुशहाल, सुखी और समृद्ध जिंदगी. आज हम आपको कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में बताएंगे जिन्हें आपको अपने घर के मंदिर में रखना चाहिए. क्योंकि इन्हें बेहद शुभ और जरूरी माना गया है. (तस्वीर - सोशल मीडिया) हर कोई चाहता है कि उनका घर-परिवार हर दुख तकलीफों से दूर एक खुशहाल जिदगी व्यतीत करें. खासकर आज के दौर में जब महामारी का खतरा हर पल सिर पर मंडरा रहा हो. अपने परिवार की सलामती के लिए जो कुछ किया जा सकता है लोग कर रहे हैं. अगर आपके घर में भी किसी वजह से सुख समृद्धि की थोड़ी कमी है तो कुछ मामूली उपायों से ही आप अपनी बिगड़ी संवार सकते हैं और पा सकते हैं खुशहाल, सुखी और समृद्ध जिंदगी. आज हम आपको कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में बताएंगे जिन्हें आपको अपने घर के मंदिर में रखना चाहिए. क्योंकि इन्हें बेहद शुभ और जरूरी माना गया है. 1. गंगाजलः ...

राहु के कारण चर्चित होते हैं प्रेम संबंध, जानिए राहु के विचित्र लक्षणBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबजानिए राहु और केतु को...   आमतौर पर माना जाता है कि प्रेम प्रकरण के लिए शुक्र स्वराशि में, बारहवें भाव का बलवान होना या शुक्र से संबंध तथा पंचम भाव का बलवान होना ही पर्याप्त है परन्तु राहु भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। राहु प्रेम संबंधों के पनपने के लिए उत्तरदायी होता है। प्रेम संबंध भी उस प्रकार के जिसमें दो व्यक्ति समाज से नजरें बचाकर एक-दूसरे से मिलते हैं, राहु उनके लिए उत्तरदायी होता है। राहु रहस्य का कारक ग्रह है और तमाम रहस्य की परतें राहु की ही देन होती हैं। राहु झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है।जो प्रेम संबंध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो संबंध दिखावे के लिए होते हैं वे राहु के ही बनावटी सत्य हैं। राहु व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है। बातें छिपाना, बात बदलना, किसी के विश्वास को सफलतापूर्वक जीतने की कला राहु के अलावा कोई और ग्रह नहीं दे सकता।राहु एकतरफा प्रेम का वह रूप है जिसमें व्यक्ति कभी अपने प्यार के सामने नहीं आता और फिर भी चुपचाप सबकुछ देखता रह जाता है, क्योंकि परिस्थितियां, ग्रह गोचर अनुकूल नहीं हैं बलवान नहीं हैं। राहु वह लालच है जिसमें व्यक्ति को कुछ अच्छा-बुरा दिखाई नहीं देता केवल अपना स्वार्थ ही दिखाई देता है। मांस मदिरा का सेवन, बुरी लत, चालाकी और क्रूरता, अचानक आने वाला गुस्सा, पीठ पीछे की बुराई यह सब राहु की विशेषताएं हैं। असलियत को सामने न आने देना ही राहु की खासियत है और हर तरह के झूठ का पर्दाफाश करना केतु का धर्म है।  केतु ही है जो संबंधों में दरार डालता है क्योंकि केतु ही दरार है। घर की दीवार में यदि दरार आ जाए तो समझ लीजिए की यह केतु का बुरा प्रभाव है और यदि संबंधों में भी दरार आ जाए, घर का बंटवारा हो जाए या रिश्तों की परिभाषा बदल जाए तो यह केतु का काम समझें। दुविधा में राहु का हाथ होता है।किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना का कारक राहु ही होता है। यदि आप मन से जानते हैं की आप झूठ की राह पर हैं परंतु आपका भ्रम है कि आप सही कर रहे हैं तो यह धारणा आपको देने वाला राहु ही है।  किसी को धोखा देने की प्रवृत्ति राहु पैदा करता है यदि आप पकड़े जाए तो इसमें भी आपके राहु का दोष है क्योंकि वह आपकी कुंडली में आपके भाग्य में निर्बल है और यह स्थिति बार-बार होगी। इसलिए राहु का अनुसरण करना बंद करें क्योंकि यह जब बोलता है तो कुछ और सुनाई नहीं देता।  जिस तरह कर्ण पिशाचिनी आपको गुप्त बातों की जानकारी देती है, उसी तरह यदि राहु आपकी कुंडली में बलवान होगा तो आपको सभी तरह की गुप्त बातें बैठे बिठाए ही पता चल जाएंगी। यदि आपको लगता है की सबकुछ गुप्त है और आपसे कुछ छुपाया जा रहा है या आपके पीठ पीछे बोलने वाले लोग बहुत अधिक हैं तो यह भी राहु की ही करामात है।  

राहु के कारण चर्चित होते हैं प्रेम संबंध, जानिए राहु के विचित्र लक्षणBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जानिए राहु और केतु को...     आमतौर पर माना जाता है कि प्रेम प्रकरण के लिए शुक्र स्वराशि में, बारहवें भाव का बलवान होना या शुक्र से संबंध तथा पंचम भाव का बलवान होना ही पर्याप्त है परन्तु राहु भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। राहु प्रेम संबंधों के पनपने के लिए उत्तरदायी होता है।   प्रेम संबंध भी उस प्रकार के जिसमें दो व्यक्ति समाज से नजरें बचाकर एक-दूसरे से मिलते हैं, राहु उनके लिए उत्तरदायी होता है। राहु रहस्य का कारक ग्रह है और तमाम रहस्य की परतें राहु की ही देन होती हैं। राहु झूठ का वह रूप है जो झूठ होते हुए भी सच जैसे प्रतीत होता है। जो प्रेम संबंध असत्य की डोर से बंधे होते हैं या जो संबंध दिखावे के लिए होते हैं वे राहु के ही बनावटी सत्य हैं। राहु व्यक्ति को झूठ बोलना सिखाता है। बातें छिपाना, बात बदलना, किसी के विश्वास को सफलतापूर्वक जीतने की कला राहु के अलावा कोई और ग्रह नहीं दे सकता।राहु एकतरफा प्रेम का वह रूप है जिसमें व्यक्ति कभी अपने प्यार के सामने नहीं आता और फ...

Web Browser By Socialist Vanita Kasaniy PunjabRead in another languagedownloadTake careEditA web browser is a type of software that is used by the world wide web or local server

वेब ब्राउज़र By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब किसी अन्य भाषा में पढ़ें डाउनलोड करें ध्यान रखें संपादित करें     वेब ब्राउज़र  एक प्रकार का  सॉफ्टवेयर  होता है, जो की  विश्वव्यापी वेब  या स्थानीय  सर्वर  पर उपलब्ध लेख, छवियों, चल-छित्रों, संगीत और अन्य जानकारियों इत्यादि को देखने तथा अन्य  इन्टरनेट  सुविधाओं के प्रयोग करने मैं प्रयुक्त होता है। [2]   वेब पृष्ठ   एच.टी.एम.एल.  नामक कंप्यूटर भाषा मैं लिखे जाते है, तथा वेब ब्राउजर उन  एच.टी.एम.एल.  पृष्ठों को उपभोक्ता के कंप्यूटर पर दर्शाता है। व्यक्तिगत कंप्यूटरों पर प्रयोग होने वाले कुछ मुख्य वेब ब्राउजर हैं  इन्टरनेट एक्स्प्लोरर ,  मोजिला फ़ायरफ़ॉक्स , सफारी ,  ऑपेरा ,  फ्लॉक  और  गूगल क्रोम , इत्यादि है जबकी वेब ब्राउजरो के  स्मार्टफोन  संस्करण  एच.टी.एम.एल.  पृष्ठों को उपभोक्ता के मोबाइल पर दर्शाने मे सहायता करते है [3] वेब ब्राउज़रों का बाजार में योगदान (गैर- आई.ई  ब्राउज़रों का): [1] ██ फायर...

क्या आज्ञा चक्र सच है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦जी हाँ आज्ञाचक्र एक सार्वभौमिक सत्य है और यह सभी मनुष्यों में होता है, हमारे माथे के एकदम बीचों-बीच जहाँ हमारी अतिसूक्ष्म इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना नाड़ियां मिलती हैं लेकिन दुर्भाग्य से यह आज्ञाचक्र कुछ ही सिद्ध योगियों का पूर्ण जागृत होता है और बाकि कुछ लोगों में यह पूर्ण जागृत न होकर केवल स्पंदित अवस्था में रहता है और इसी अवस्था से पूर्ण जागृत अवस्था में आपको आने के लिए निरंतर साधना-रत रहना पड़ता है, ध्यान और समाधि की चिर-अवस्था को प्राप्त होना पड़ता है | अध्यात्म क्षेत्र के विद्वान और साधक इस आज्ञा चक्र को तीसरी आँख भी बोलते हैं जिसके खुलने से इस ब्रहांड के कई सारे अनदेखे रहस्य आप साक्षात देख पाने में सक्षम हो जाते हैं, वहीँ हमारे वैज्ञानिक विचारधारा के लोग इस आज्ञाचक्र को पीनियल या पिट्यूटरी ग्रंथि भी बोलते हैं, लेकिन आज तक इस ग्रंथि का होना और इसका सही कार्य उद्देश्य वैज्ञानिक पता नहीं कर सके हैं |यही वह चक्र है जो साधना में सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है क्यूंकि बाकी के सारे चक्र जैसे मूलाधार, स्वाधिष्ठान, विशुद्धि आदि इसी अजना चक्र से जुड़े होते हैं और ऊर्जा प्रवाह के जरिये यह चक्र एक-एक करके बाकी के चक्रों को बेधता हुआ, शुद्धि करता हुआ उनको जाग्रत करता जाता है | बताया गया है की पूर्वजन्म में अगर आपकी साधना रही होगी तो इस जनम में साधना आज्ञाचक्र से ही शुरू होगी लेकिन बाकी के चक्र स्वतः खुलते जाएंगे | वैसे जितना ऊर्जा स्पंदन का अनुभव मैंने आज्ञाचक्र पर किया है उससे उलट अनाहत चक्र आपको कुछ ऐसा अनुभव प्रतीत करवाएगा जैसे की आपके सीने के ऊपर कोई पहिया हवा में लगातार घूमता रहता हो लेकिन यहाँ भी आज्ञाचक्र ही आगे रहता है जैसे की वह सभी चक्रों का राजा हो |Image from Googleयहाँ मैंने आज्ञाचक्र सम्बंधित वह विशेषताएं संदर्भित नहीं कीं जो मैंने इंटरनेट पर काफी कुछ हद तक पढ़ीं या कई किताबों में भी इसका विस्तृत विवरण है, यूट्यूब वीडिओज़ भी एक से बढ़कर एक, उनकी तो क्या ही कहें लगता है जैसे की एक्स-मैन की तरह पावर्स आपके पास आने ही वाली हैं तो उस सबका यहाँ लिखना मुझे ठीक नहीं लगा क्यूंकि वास्तविक अनुभव बिकुल ही अलग है हालांकि सिद्धियों और शक्तियों की प्राप्ति निश्चित ही है अगर आप सफल साधक हो लेकिन ये सिद्धियां और शक्तियां ऐसे काम नहीं करतीं जैसे की फिल्मों में देखते हैं या फिर जैसा की कई यूट्यूब विडोयोज़ में कुछ ऐसा ज्ञान पेला गया है | जब यह सब कुछ आपके साथ होगा तो आप तब मेरी बातों का मतलब पक्का समझ जायेंगे | एक बात और जब आज्ञाचक्र ध्यान-साधना शुरू करें तो मंत्र चुनाव अवश्य थोड़ा सावधानी से करें क्यूंकि सारा कुछ इस मंत्र की ऊर्जा से समबन्धित है, जैसा आपका मंत्र वैसा ही आपका मन और वैसे ही आपके अनुभव होंगे, वैसे ही सपने होंगे, वैसा ही स्वभाव हो जायेगा, वैसा ही शरीर होने लगेगा |एक नितांत सच यह है की जिसको भी कुछ ऐसा देखना है जो ब्रहाण्ड के रहस्य्मयी वातावरण का अनुभव एवं साक्षात दर्शन करवाता है तो वह यह आज्ञाचक्र ही है, तो जितना आप आज्ञाचक्र पर ध्यान साधने में पारंगत होते जायेंगे उतने ही नित नए रहस्यों और आयामों को आप अपनी खुली आंखों से देख पाएंगे | चूँकि बंद आँखों से ध्यान करते समय लोगों को कई बार लगता है की सब भ्रम है या मष्तिष्क में होने वाली रासायनिक, यौगिक क्रियाओं का परिणाम है तो मैं कहूंगा की आप खुली आँखों से त्राटक का अभ्यास कीजिये और एक दिन आएगा जब आपके काफी भ्रम दूर होने लगेंगे, आपको दिखेगा की कैसे परमेश्वर निराकार होते हुए भी हमको साक्षात दीखते हैं, कैसे इसी पृथ्वी पर एक अदृश्य अवस्था में कुछ अलग ही संसार बसा हुआ है और ये वैज्ञानिक इनको ढूंढने अंतरिक्ष में निकल पड़ते हैं जबकि सब यहीं है हमारे आसपास बस आपको वह अवस्था प्राप्त करनी होगी ये सभी रहस्यों को देखने, समझने और जानने के लिए |Image from Googleसबसे पहले एक बात की जिस किसी भाई को संशय है की भगवान्, ईश्वर, अल्लाह, गॉड है ही नहीं बस यह पृथ्वी और इसका जीवन एक सतत प्रक्रिया के तहत हुआ है तो उनको तो यह आज्ञाचक्र और इसके द्वारा त्राटक क्रिया जरूर जरूर करनी चाहिए ताकि उनकी यह सोंच और अविश्वास भगवान् प्रति दूर हो सके | वो सभी भाई जो आज्ञाचक्र पर ध्यान करते हैं, त्राटक करते हैं खासकर खुली आँखों से वो अवश्य ही मेरी बातों से सशर्त सहमत होंगे | कितने ही लोगों से सुना है अमुक संत - महात्मा त्रिकालदर्शी हैं थे तो वो सही सुना है क्यूंकि यही वो सिद्ध पुरुष हैं जो साधना के उच्चतम स्तर को प्राप्त करते हुए स्वयं भगवान् तुल्य होजाते हैं, ना केवल इनका आज्ञाचक्र पूर्णतः जाग्रत होता है बल्कि सभी और बाकि के चक्र भी इनके जागृत होते हैं |आज्ञाचक्र की वह विशेषता जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो यह की जब यह स्पंदित हो जाग्रत अवस्था की और त्वरित हो और लगातार 24 घंटे - सातों दिन - बारह महीने यह काम करता है और बावजूद इसके साधक को इससे कोई ख़ास परेशानी नहीं महसूस होती बल्कि एक अलग ही तरह का आनंद, नशा, शरीर पृथ्वी से कुछ फ़ीट ऊपर हवा में, ऊर्जा का औरा या कहो की ऊर्जा का घेरा चेहरे के चारों तरफ, हाथों से, पैरों से निकलता, बहता और फिर वापस आज्ञाचक्र केंद्र में वापिस टक्कर मारता रहता है | ऐसे में अगर किसी को इन सब चक्रों के बारे में अगर कुछ भी जानकारी न हो तो यह अमुक व्यक्ति के लिए परेशानी का कारण बन सकता है इसलिए पहले से ही यह सब जानकारी रखनी होगी तब ही आगे बढ़ना है आपको |BAL Vnita mahila ashramकम से कम आज जब इन सभी अनुभवों को यहाँ लिखते हुए मुझे इस बात की ख़ुशी है की भगवान् के होने और ना होने से सम्बंधित मेरा प्रश्न अब शेष नहीं रह गया बल्कि उसके आगे भी कई ऐसी बातें हैं जो आप इस आज्ञाचक्र के द्वारा जान सकते हो, भगवान् ने मनुष्य को बनाया ही इसी सबके लिए है लेकिन साथ ही माया में भी उलझा रखा है ताकि पात्रता जांची-परखी जा सके और उसी के अनुरूप पात्र साधक को ज्ञान और सिद्धियां प्राप्त हो सकें | तो हो सके तो खुद के बारे में जानना शुरू करो, साधना में रम जाओ चक्रों को जगाओ | जागो बंधू जागो !धन्यवाद !ॐ नमः शिवाय !

क्या आज्ञा चक्र सच है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦 जी हाँ आज्ञाचक्र एक सार्वभौमिक सत्य है और यह सभी मनुष्यों में होता है, हमारे माथे के एकदम बीचों-बीच जहाँ हमारी अतिसूक्ष्म इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना नाड़ियां मिलती हैं लेकिन दुर्भाग्य से यह आज्ञाचक्र कुछ ही सिद्ध योगियों का पूर्ण जागृत होता है और बाकि कुछ लोगों में यह पूर्ण जागृत न होकर केवल स्पंदित अवस्था में रहता है और इसी अवस्था से पूर्ण जागृत अवस्था में आपको आने के लिए निरंतर साधना-रत रहना पड़ता है, ध्यान और समाधि की चिर-अवस्था को प्राप्त होना पड़ता है | अध्यात्म क्षेत्र के विद्वान और साधक इस आज्ञा चक्र को तीसरी आँख भी बोलते हैं जिसके खुलने से इस ब्रहांड के कई सारे अनदेखे रहस्य आप साक्षात देख पाने में सक्षम हो जाते हैं, वहीँ हमारे वैज्ञानिक विचारधारा के लोग इस आज्ञाचक्र को पीनियल या पिट्यूटरी ग्रंथि भी बोलते हैं, लेकिन आज तक इस ग्रंथि का होना और इसका सही कार्य उद्देश्य वैज्ञानिक पता नहीं कर सके हैं | यही वह चक्र है जो साधना में सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है क्यूंकि बाकी के सारे चक्र जैसे मूलाधार, स्वाधिष्ठान, विशुद्धि आदि इस...

अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखते हुए मोदी जी ने पारिजात का पौधा क्यों लगाया है? पारिजात वृक्ष की क्या महत्ता है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦श्रीराम के जीवन मे पारिजात एवं कल्पवृक्ष का बड़ा महत्व है जिसके पीछे एक विचित्र कथा है।ये बात तब की है जब लंका युद्ध समाप्त हो गया था और श्रीराम सुखपूर्वक अयोध्या पर राज्य कर रहे थे। महर्षि दुर्वासा महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र थे जो भगवान शिव के अंश से जन्मे थे। ये बहुत क्रोधी थे और श्राप तो जैसे इनकी जिह्वा की नोक पर रखा रहता था। इन्होंने एक बार श्रीराम की परीक्षा लेने की ठानी। उन्हें पता था कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं किन्तु फिर भी वे श्रीराम की परीक्षा लेने अपने 60000 शिष्यों के साथ अयोध्या पहुँचे।जब श्रीराम को पता चला कि महर्षि दुर्वासा अयोध्या पधारे हैं तो वे स्वयं अपने भाइयों के साथ द्वार पर उन्हें लिवाने चले आये। उन्होंने महर्षि दुर्वासा की अभ्यर्थना की और उनके चरण प्रक्षालन कर उन्हें ऊँचे आसन पर बिठाया। फिर उन्हें अर्ध्यपान देने के बाद उन्होंने कहा - 'हे महर्षि! आप अपने तेजस्वी शिष्यों के साथ अयोध्या पधारे ये हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है। मुझे वनवास समय में अपनी पत्नी और भाई के साथ आपके माता-पिता महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज आपके भी दर्शन प्राप्त कर मैं अपने आपको धन्य मान रहा हूँ। कृपया कहें कि मेरे लिए क्या आज्ञा है।"तब महर्षि दुर्वासा ने कहा - 'हे कौशल्यानंदन! मुझे भी तुम्हारे दर्शन कर बड़ा हर्ष हो रहा है। मैं पिछले १०० वर्षों से उपवास पर था और आज ही मेरा उपवास पूर्ण हुआ है। इसी कारण भोजन करने की इच्छा से मैं अपने शिष्यों सहित तुम्हारे द्वार पर आया हूँ।' तब श्रीराम ने प्रसन्नता से कहा - 'हे भगवन! मेरे लिए इससे प्रसन्नता की और क्या बात होगी कि आपको भोजन कराने के सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा।' तब महर्षि दुर्वासा ने आगे कहा - 'हे राम! किन्तु मेरा संकल्प है कि तुम मुझे ऐसा भोजन कराओ जो जल, धेनु या अग्नि की सहायता से ना पका हो। इसके अतिरिक्त भोजन करने से पूर्व मेरी शिव पूजा के लिए तुम मुझे ऐसे अद्भुत पुष्प मँगवा दो जैसे आज तक किसी ने ना देखे हों। इस सब के लिए मैं तुम्हे केवल एक प्रहर का समय देता हूँ। अगर ये तुमसे ना हो सके तो मुझे स्पष्ट कह दो ताकि मैं यहाँ से चला जाऊँ।'तब महर्षि की इस बात को सुनकर श्रीराम ने मुस्कराते हुए नम्रता से कहा - 'भगवान् ! मुझे आपकी यह सब आज्ञा स्वीकार है।' ये सुनकर महर्षि दुर्वासा प्रसन्न होकर बोले - 'ठीक है। मैं अपने शिष्यों के साथ सरयू में स्नान करके आता हूँ। तब तक हमारे लिए सभी सामग्रियों की व्यवस्था कर दो।' ये कह कर महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ स्नान करने को चले गए। उनके जाने के बाद देवी सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगे कि किस प्रकार श्रीराम केवल एक प्रहर ऐसी दुर्लभ चीजों को प्राप्त कर पाएंगे। तब श्रीराम ने लक्ष्मण से एक पत्र लिखने को कहा और फिर उसे अपने बाण पर बांध कर स्वर्गलोक की ओर छोड़ दिया। वह बाण वायु वेग से उड़कर अमरावती में इन्द्र की सुधर्मा नामक सभा में जाकर उनके सामने गिर पड़ा। उस बाण को देखते ही देवराज इंद्र पहचान गए कि ये श्रीराम का बाण है।उन्होंने तुरंत उसपर बंधे पत्र को खोलकर पढ़ा तो उसमे लिखा था - 'हे देवराज! आप सुखी रहें। मैं सदैव आपका स्मरण करता हूँ किन्तु आज आपकी एक सहायता के लिए आपको पत्र लिख रहा हूँ। अयोध्या में इस समय महर्षि दुर्वासा अपने 60000 शिष्यों के साथ उपस्थित हैं और वो ऐसा भोजन चाहते हैं, जो गऊ, जल अथवा अग्नि के द्वारा सिद्ध न किया हो। साथ ही उन्होंने शिव पूजन के लिए ऐसे पुष्प माँगे हैं जिन्हें कि अब तक मनुष्यों ने न देखा हो। अतः आप अतिशीघ्र कल्पवृक्ष और पारिजात, जो क्षीरसागर से निकले हैं, मेरे पास भेज दें। इसके लिए रावण के संहारक मेरे बाणों की प्रतीक्षा मत कीजियेगा।'वो पत्र मिलते ही इंद्रदेव उठे और कल्पवृक्ष तथा पारिजात को साथ ले देवताओं सहित विमान में बैठकर अयोध्या में आ पहुँचे। वहाँ श्रीराम ने इंद्र का स्वागत किया उधर सरयू तट पर महर्षि दुर्वासा ने अपने एक शिष्य से कहा कि वे भवन जाकर देख आएं कि वहाँ का क्या हाल है। जब वो शिष्य राजभवन पहुँचा तो इन्द्रादि देवताओं से घिरे श्रीराम को देखा। उसने वापस आकर महर्षि को सारा हाल सुनाया। ये सुनकर महर्षि आश्चर्य करते हुए श्रीराम के पास पहुँचे। उन्हें आया देख कर श्रीराम ने देवताओं सहित उठकर उन्हें प्रणाम किया और फिर उन्होंने महर्षि को किसी के द्वारा ना देखे गए पारिजात के पुष्प शिव पूजा के लिए अर्पण किये। महर्षि दुर्वासा ने प्रसन्नतापूर्वक उन अद्भुत पुष्पों द्वारा श्रीराम और देवताओं सहित भगवान महाकाल की पूजा की।पूजा समाप्त होने के बाद श्रीराम ने देवी सीता को भोजन परोसने के लिए कहा। तब सीता ने कल्पवृक्ष के नीचे असंख्य पात्रों को रखवा कर प्राथना की - 'हे कपलवृक्ष! आप सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं। कृपया महर्षि दुर्वासा और उनके सभी शिष्यों को संतुष्ट करें।' देवी सीता के ऐसा कहते ही वो सारे पात्र कल्पवृक्ष द्वारा ऐसे व्यंजनों से भर गए जो अग्नि, दूध अथवा जल से नहीं बने थे। ये देख कर महर्षि दुर्वासा ने श्रीराम की भूरि-भूरि प्रशंसा की और आकंठ भोजन कर वहाँ से प्रस्थान किया।यही कारण है कि श्रीराम मंदिर में पारिजात वृक्ष लगाया जा रहा है। ये बहुत शुभ संकेत है।जय श्रीराम। 🚩

अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखते हुए मोदी जी ने पारिजात का पौधा क्यों लगाया है? पारिजात वृक्ष की क्या महत्ता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦 श्रीराम के जीवन मे पारिजात एवं कल्पवृक्ष का बड़ा महत्व है जिसके पीछे एक विचित्र कथा है। ये बात तब की है जब लंका युद्ध समाप्त हो गया था और श्रीराम सुखपूर्वक अयोध्या पर राज्य कर रहे थे। महर्षि दुर्वासा महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के पुत्र थे जो भगवान शिव के अंश से जन्मे थे। ये बहुत क्रोधी थे और श्राप तो जैसे इनकी जिह्वा की नोक पर रखा रहता था। इन्होंने एक बार श्रीराम की परीक्षा लेने की ठानी। उन्हें पता था कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं किन्तु फिर भी वे श्रीराम की परीक्षा लेने अपने 60000 शिष्यों के साथ अयोध्या पहुँचे। जब श्रीराम को पता चला कि महर्षि दुर्वासा अयोध्या पधारे हैं तो वे स्वयं अपने भाइयों के साथ द्वार पर उन्हें लिवाने चले आये। उन्होंने महर्षि दुर्वासा की अभ्यर्थना की और उनके चरण प्रक्षालन कर उन्हें ऊँचे आसन पर बिठाया। फिर उन्हें अर्ध्यपान देने के बाद उन्होंने कहा - 'हे महर्षि! आप अपने तेजस्वी शिष्यों के साथ...